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तत्त्व : आचार : कथानुयोग ]
कथानुयोग-चक्रवर्ती के रत्न
८. सेनापतिरत्न—यह चक्रवर्ती की सेना का अधिनायक होता होता है। वासुदेव के तुल्य बलशाली होता है । चक्रवर्ती की ओर से यह चार खण्डों की विजय करता है।
९. गाथापतिरत्न-यह चक्रवर्ती, उसकी सेना एवं परिजनद हेतु उत्तम खान-पान की व्यवस्था करता है।
१० वर्षकिरत्न-यह चक्रवर्ती के लिए, सेना के लिए, परिजनवृन्द के लिए आवासठहरने के स्थान की व्यवस्था करता है।
११. पुरोहितरत्न-यह ज्योतिविद्, स्वप्नशास्त्रज्ञ, निमित्तज्ञ एवं लक्षण होता है। दैविक आदि उपसर्ग उपशान्त करने हेतु शान्ति कर्म करता है।
१२. स्त्रीरत्न-यह सर्वांग सुन्दरी, अखण्डयौवना, ऋतु-अनुरूप दैहिक वैशिष्ट्यवती, सर्वथा पुष्टि-तुष्टिकरी तरुणी होती है। तीव्र भोगावलिक कर्मों का उदय लिए रहती है। चक्रवर्ती इसमें अत्यधिक अनुरक्त होता है।
१३. अश्वरत्न-यह उत्तम घोड़ा एक क्षण में सौ योजन पार कर जाने का सामर्थ्य लिए होता है। यह कदममय, जलाच्छन्न, पर्वतीय, गह्वरमय विषम स्थलों को सहज ही लांघ जाने में सक्षम होता है।
१४. हस्तिरत्न-इन्द्र के वाहन ऐरावत गजराज की ज्यों यह समस्त उत्तम गुणों से समायुक्त होता है।
भारत के षट्खण्ड विजयाभियान में इन रत्नों का बड़ा साहाय्य रहा।'
बौद्ध-परम्परा सात रत्न
तथागत ने कहा-'आनन्द ! कुशावती के राजा महासुदर्शन के पास सात रत्न थे।
"आनन्द ! एक बार का प्रसंग है, उपोसथ-पूर्णिमा की रात थी। राजा महासुदर्शन उपोसथ-व्रत स्वीकार किये था । उसने मस्तक से पानी ढालते हुए स्नान किया। स्नान कर वह अपने प्रासाद की सबसे ऊँची मंजिल पर गया । यों जब वह वहाँ स्थित था, तो उसके समक्ष नाभि-नेमि सहित अपने पूर्ण आकार-प्रकार के साथ चक्र-रत्न आविर्भ त हुआ।
___“जब राजा ने उसे देखा, उसके मन में विचार उठा-यों सुना है, उपोसथ-पूर्णिमा की रात्रि के समय जो क्षत्रिय राजा मस्तक पर जल ढालते हुए स्नान कर, उपोसथ व्रत रखे प्रासाद की सबसे ऊपर की मंजिल पर जाता है, वहाँ स्थित होता है. जिसके समक्ष सहस्र आरों से युक्त चक्र-रत्न आविर्भूत होता है, वह चक्रवर्ती होता है। मेरे समक्ष चक्र-रत्न आविर्भूत हुआ है, मैं चक्रवर्ती राजा हूँगा।
"आनन्द ! राजा महासुदर्शन अपने आसन से उठा । उसने अपना उत्तरीय अपने कन्धे पर रखा । अपने दाहिने हाथ में सोने का जल-पात्र लिया। उससे चक्र-रत्न का अभिषेक किया, कहा--"चक्र-रत्न ! मैं आपका स्वागत करता हूँ, आप जयशील हों।"
"आनन्द ! वह चक्र-रत्न पूर्व दिशा की ओर रवाना हुआ। राजा महासुदर्शन अपनी चातुरंगिणी सेना लिये उसके पीछे-पीछे चला । चलते-चलते चक्र-रत्न जिस प्रदेश में रुकता, राजा अपनी सेना के साथ वहीं पड़ाव डालता।
१. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र, वक्षस्कार ३ सूत्र ४१.७०
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