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________________ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : ३ गई। राजा उस पर मुग्ध था। उसे बहुत प्यार करता था। राजा के और भी अनेक रानियाँ थीं। वे यह देख सौतिया डाहवश मन-ही-मन कनकमंजरी से ईर्ष्या करने लगीं। वे ऐसी कपोल-कल्पित बातें गढ़ने लगीं, राजा तक पहुँचाने लगी, जिससे राजा का मन कनकमंजरी से हट जाए। कनकमंजरी से रानियों की ये दुश्चेष्टाएँ छिपी न रह सकीं। उसने इसे अपने लिए एक खतरा माना। वह बुद्धिमती तो थी ही, उसने राजा को सदा अपने वश में रखने का उपाय सोचा। रोचक कहानी क्रम एक बार का प्रसंग है, रात को राजा कनकमंजरी के महल में आया , प्रेमालाप किया, शय्या पर सो गया । कनकमंजरी की एक दासी थी। वह सहेली की ज्यों उसके बड़ी मुंह लगी थी। रानी के पास आई, बैठी, बोली- "स्वामिनी ! नींद नहीं आ रही है। लम्बी रात कैसे कटेगी? आज कोई कहानी कहो।" कनकमंजरी ने कहा- “स्वामी लेटे हैं। उनकी जरा आँखें लग जाने दो। फिर तुम्हें मैं एक कहानी कहूँगी।" राजा ने योंही आँखें मूंद रखी थीं। उसे नींद नहीं आई थी। उसके मन में भी कहानी सुनने की उत्कण्ठा जागी। उसने अपने को नींद आ जाने का-सा प्रदर्शन किया, किन्तु, आँखें बन्द किये वह जागता सोया रहा। ___कनकमंजरी यह सब जानती थी। वह अपनी योजनानुसार ऐसा ही चाहती थी। उसने कहानी कहना प्रारम्भ किया। प्यार की कसौटी एक वणिक् था। उसकी एक पुत्री थी। वह अत्यन्त रूपवती थी। वह तरुण हुई। उसकी माँ ने कहीं एक वणिक्-पुत्र के साथ उसका विवाह सम्बन्ध निश्चित किया । पिता ने उसका सम्बन्ध अन्यत्र स्थिर किया। उसके भाई ने किसी और ही जगह उसका सम्बन्ध तय किया। विवाह का दिन आया। तीन स्थानों से तीन वर अलग-अलग बारात लेकर वहाँ पहँचे। बड़ा आश्चर्य था, कठिनाई थी। गाँववासी एकत्र हो गये। तीनों वरों में से प्रत्येक की ओर से यह दावा था कि विवाह उसी के साथ हो। संघर्ष का वातावरण उत्पन्न हो गया। तभी एक ऐसा संयोग बना, एक सर्प ने उस कन्या को डंस लिया। कन्या मर गई। घर में सर्वत्र शोक छा गया। चारों वर कन्या पर मुग्ध थे, रागासक्त थे। उनमें से एक ने सोचा - जब प्रेयसी ही चली गई तो मुझे जीकर क्या करना है ? मुझे भी उसके साथ-साथ प्राण त्याग कर देना चाहिए। यह विचार कर वह उस कन्या की चिता में बैठ गया, जल गया। दूसरे ने सोचा-मैं अनब्याहा कैसे घर जाऊँ ? वहाँ किस प्रकार अपना मुंह दिखलाऊँगा? उसने कन्या की चिता से राख ली, उसे अपनी देह पर मला और वह अवधूत हो गया। उसके प्यार में पागल बना इधर-उधर भटकने लगा। तीसरे ने विचार किया-वणिक्-कन्या से मेरा बेहद प्यार है। प्यार के खरेपन की कसौटी यह है, मैं उसे पुन: जीवित कर पाऊँ, अपने इष्टदेव की आराधना कर संजीवनी ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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