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________________ ६८४ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन आवागमन की जरा भी परवाह न करते, अंधाधुध घोड़ा दौड़ाते अश्वारोही के इस व्यवहार पर उसे बडा क्रोध आया. जिसे वह भीतर ही भीतर पी गई। __वह भोजन लिए अपने पिता के पास आई। उसे देखकर उसके पिता ने अपना कार्य कुछ देर के लिए बन्द कर दिया । तूलि का एक ओर रखी तथा उस कन्या से कहा-"पुत्री ! मैं सौचादि से निवृत्त होकर शीघ्र ही आ रहा हूँ।" पिता की यह अव्यवस्थापूर्ण चर्या कन्या को अच्छी नहीं लगी, किन्तु, वह कुछ बोली नहीं। अद्भुत चित्र बूढ़ा चित्रकार जब शौचार्थ बाहर गया तो उस कन्या ने उसकी तूलिका अपने हाथ में ली और अपने पिता को चित्रांकन हेतु दी गई भूमि पर एक मयूर-पिच्छ का चित्र अंकित किया। कन्या में चित्रकारिता का अद्भुत कौशल था । उसने चित्र में ऐसा सूक्ष्म कलापूर्ण रंग-सन्निवेश किया कि वह चित्र चित्र नहीं लगता था, वस्तुतः मयूर-पिच्छ ही प्रतीत होता था। निर्मीयमान चित्रशाला का निरीक्षण करने हेतु राजा उधर आया। दूर से ही मयूरपिच्छ के चित्र पर उसकी दृष्टि पड़ी। उसे ऐसा प्रतीत हुआ, मयूर-पिच्छ वहाँ रखा है। उसके मन में आया, वह उसे उठा ले । वह चित्र-भित्ति के समीप आया । उसने मयूर-पिच्छ को उठाने हेतु ज्योंही दीवार पर हाथ रखा, हाथ दीवार से टकराया। तब उसे अनुभव हुआ कि उसे भ्रम हुआ, यह तो चित्र है, मयूर-पिच्छ नहीं है । वह मन-ही-मन बड़ा लज्जित हुआ। चार मूर्ख कनकमंजरी यह देखकर हँस पड़ी और सहसा उसके मुंह से निकला-“मेरी खट्वा के चारों पाये पूर्ण हो गये।" राजा मन-ही-मन बड़ा कसमसाया। वह कन्या द्वारा कहे गये वाक्य का अर्थ नहीं समझ सका । उसने उससे पूछा-'कल्याणी ! मैं नहीं समझा, तुम क्या कहती हो? तुम्हारी खट्वा के चार पाये क्या हैं ? वे किस प्रकार पूर्ण हो गये ?" __ कन्या ने मुस्कराते हुए कहा- “महानुभाव ! सुनो, मैंने चार मूर्ख देखे हैं। मुझे वे बड़े विचित्र लगे।" राजा ने पूछा- “वे चार मूर्ख कौन-कौन से हैं ?" कन्या बोली- पहला मुर्ख इस चित्रशाला का निर्मापक यहां का राजा है। यहां तरुण चित्रकार भी कार्य करते हैं, वृद्ध चित्रकार भी कार्य करते हैं। यह स्पष्ट है, तारुण्य एवं वाक्य में कार्यक्षमता में अन्तर आ जाता है। तरुण जिस स्फूति से कार्य कर सकता है, वृद्ध के हाथों में, अंगुलियों में वैसी शक्ति कहाँ से आए, किन्तु, राजा इसका विचार न कर तरुण तथा वृद्ध-सभी चित्रकारों को चित्रांकन हेतु समान भूमि -भित्ति-प्रदेश देता है, तदनुसार ही उन्हें पारिश्रमिक देता है । यह मूर्खता नहीं तो क्या है ?" राजा को लगा, कन्या जो कह रही है, यथार्थ है। वह शर्म से मानो गड़ गया। उसने कन्या की ओर गौर से देखा, कहा-"अच्छा, अब बतलाओ, दूसरा मूर्ख कौन है ?" Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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