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________________ ५५६ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन तोड़ डाला । राजा को पकड़ लिया । उसके राज्य पर अधिकार कर लिया । द्वारवती को जीतने का उपक्रम वे द्वारवती गये । उसके एक तरफ समुद्र था तथा दूसरी तरफ पहाड़ था । उस नगर पर कोई भी मनुष्य अधिकार नहीं कर सकता था। एक यक्ष उसकी रक्षा करता था। जब वह आक्रमणोद्यत शत्रु को देखता, तब गधे का रूप धारण कर लेता और जोर से रेंकता । यक्ष के प्रभाव से उसी समय वह नगर वहाँ से उठकर समुद्र में एक द्वीप पर चला जाता । जब उन दश भाइयों को आक्रमणार्थ आया देखा तो वह रेंका | नगर उठा और समुद्र में, द्वीप पर चला गया । उनको नगर नहीं दिखाई दिया, तब वे वहाँ से वापस लौट गये । उनके चले जाने पर नगर फिर आकर अपने स्थान पर अवस्थित हो गया । वे पुनः नगर पर अधिकार करने आये । गधे ने फिर पूर्ववत् किया। नगर गायब हो गया। यों प्रयत्न करने पर भी वे द्वारवती पर अधिकार नहीं कर सके । तपस्वी कृष्ण द्वैपायन द्वारा मार्गदर्शन : द्वारवती-विजय तब वे तपस्वी कृष्ण द्वैपायन के पास आये, उनको प्रणाम किया तथा पूछा - "हम द्वारवती पर अधिकार नहीं कर पा रहे हैं । हमें कृपा कर कोई युक्ति बताएँ ।' "3 कृष्ण द्वैपायन ने कहा - "नगर की परिखा के पीछे की ओर एक गधा चरता है। जब वह देखता है कि शत्रु नगर पर चढ़ आया है तो वह रेंकता है । उसी समय नगर ऊपर उठता है और समुद्र के अन्तर्वर्ती एक द्वीप पर चला जाता है । तुम वहाँ जाओ और उस गधे से मिन्नत करो - उसके पैर पकड़ो। " [ खण्ड : ३ उन्होंने तपस्वी कृष्ण द्वैपायन को प्रणाम किया तथा वहाँ पहुँचे, जहाँ गधा था । वे गधे के पैरों में पड़े और बोले – “स्वामिन् ! आपके अतिरिक्त हमारा कोई सहारा नहीं है । जब हम नगर पर कब्जा करें, तब आप आवाज न करें ।" गधा बोला - "मेरे लिए यह संभव नहीं है कि मैं चुप रह सकूं । किन्तु, तुम्हें उपाय बताता हूँ, तुम में से चार व्यक्ति पहले आ जाएं। वे साथ में लोहे के चार हल लाएं, जिनके लोहे की सांकलें बंधी हों। नगर के चारों द्वारों पर जमीन में लोहे के बड़े-बड़े चार खंभे गाड़ दें। जब नगर ऊपर उठने लगे तो वे हलों को सम्भाल लें । उनसे बँधी हुई सांकलें खम्भों में बांध दें। ऐसा करने पर नगर ऊपर नहीं उठ सकेगा ।" उन्होंने कहा - "अच्छा, जैसा आप कहते हैं, वैसा ही करेंगे ।" वे वहाँ से वापस आये । अर्ध रात्रि के समय उनमें से चार भाई लोहे के चार हल लिये आये । नगर के चारों दरवाजों पर लोहे के बड़े-बड़े चार खम्भे गाड़ कर खड़े हो गये। गधा रेंका। नगर ऊपर उठने लगा। तभी चारों दरवाजों पर खड़े उन चारों ने हल लिये और हलों में बँधी हुई लोहे की सांकलें चारों खम्भों में बांध दीं। नगर ऊपर नहीं उठ सका। तब वे दशों भाई नगर में प्रविष्ट हुए, राजा को मार डाला, नगर पर कब्जा कर लिया । विशाल राज्य इस अभियान में उन्होंने जम्बूद्वीप के तिरसठ हजार नगरों के राजाओं को चक्र द्वारा मार डाला । उनके राज्य अधिकृत कर लिये । उन्होंने द्वारवती में रहते हुए अपने राज्य को Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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