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तत्त्व : आचार : कथानुयोग
विविध जिज्ञासाएँ : उत्तर
श्रीकृष्ण ने विनय पूर्वक फिर जिज्ञासा की - "प्रभुवर ! तो क्या मैं संयम पथ का -- श्रमण जीवन का अवलम्बन नहीं कर सकता ?"
अरिष्टनेमि - " वासुदेव ! ऐसी ही बात है । तुम संयम नहीं ले सकते । "
फिर कृष्ण ने अपनी मृत्यु के सम्बन्ध में जिज्ञासा करते हुए पूछा - "भगवन् ! मेरी मृत्यु किस प्रकार होगी ? "
अरिष्टनेमि
वासुदेव ! तुम्हारी मृत्यु तुम्हारे भाई जराकुमार के हाथ से
होगी ।"
कथानुयोग – वासुदेव कृष्ण : घट जातक
श्रीकृष्ण - "क्या मेरी मृत्यु द्वारिका में ही होगी ?" अरिष्टनेमि - " द्वारिका तो पहले ही विनष्ट हो जायेगी ।"
श्रीकृष्ण - " भवगन् ! कैसे ?
अरिष्टनेमि--"मदिरा, द्वैपायन तथा अग्नि-इसके विनाश के हेतु होंगे ।' द्वारिका के विनाश की बात सुनते ही यादव चिन्ताकुल हो गये ।
श्रीकृष्ण ने फिर पूछा— "भगवन् ! स्पष्ट बताने की कृपा कीजिए— ये तीनों द्वारिका के विनाश के किस प्रकार कारण बनेंगे ? "
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भगवान् ने बतलाया "शौर्यपुर के बाहर पराशर नामक तापस निवास करता है । उसने यमुना-द्वीप के अन्तर्गत एक निम्नकुलोत्पन्न कन्या के साथ यौन सम्बन्ध स्थापित किया । उससे उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जो द्वैपायन के नाम से प्रसिद्ध हुआ । यादवों के प्रति स्नेह के कारण वह द्वारिका के पास ही रहने लगेगा । वह ब्रह्मचारी ऋषि एक बार तपस्यानिरत अपने आश्रम में बैठा होगा । यादव कुमार तब सुरा के नशे में उन्मत्त होंगे। वे द्वैपायन के पास जायेंगे, उसे सतायेंगे, उत्पीडित करेंगे। तब वह क्रोधवश द्वारिका को भस्म करने का निदान करेगा | केवल बलराम और तुम बचोगे और सब यादव नष्ट हो जायेंगे | तब तुम दोनों दक्षिण दिशा में पाण्डव-मथुरा की ओर जाओगे । वन में जराकुमार के बाण द्वारा तुम्हारा मरण होगा। तुम तृतीय बालुका प्रभा भूमि में पैदा होगे ।"
तृतीय भूमि में पैदा होने की बात सुनकर श्रीकृष्ण बहुत खिन्न हो गये । विषाद की गहरी रेखाएँ उनके मुख पर उभर आईं। यह देखकर भगवान् अरिष्टने म बोले"वासुदेव ! दुःखित मत बनो । तृतीय भूमि से निर्गत होकर तुम जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भरतक्षेत्र में पंडू जनपद के शतद्वार नामक नगर में जन्म लोगे। तब तुम अमम नामक बारहवें तीर्थंकर होगे ।"
तीर्थंकर जैसे सर्वोच्च गौरव-मंडित पद प्राप्त होने की बात सुनकर श्रीकृष्ण को परितोष हुआ ।
बलराम ने भी अपने मोक्ष के सम्बन्ध में भगवान् अरिष्टनेमि के समक्ष अपनी जिज्ञासा उपस्थित की ।
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भगवान् ने बताया- - "यहाँ अपना आयुष्य पूर्ण कर तुम ब्रह्मदेवलोक में देव के रूप में जन्म-ग्रहण करोगे । वहाँ से च्युत होकर फिर मनुष्य-भव में आओगे । फिर देव भव प्राप्त करोगे । देवायुष्य का भोग कर पुनः मनुष्य के रूप में जन्म ग्रहण करोगे । उस भव में अमम तीर्थंकर के शासन काल में मोक्ष प्राप्त करोगे ।
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