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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड:३
मन में पति के रूप में स्वीकार कर लिया। उन्हीं के साथ विवाह करने की प्रतिज्ञा कर ली। मेरे पिता राजा महीधर मेरा सम्बन्ध और कहीं करना चाहते थे, किन्तु, मैंने स्वीकार नहीं किया। जब उन्होंने सुना कि महाराज दशरथ दीक्षित हो गए हैं, राम, लक्ष्मण वन में चले गए हैं, तो वे बड़े खिन्न हए। उन्होंने निराश होकर मेरा सम्बन्ध इन्द्र पुरी के राजकमार के साथ पक्का कर दिया। मैं अपनी प्रतिज्ञा पर दृढ़ थी। मुझे यह सम्बन्ध स्वीकार नहीं था। एक दिन मैं उनकी दृष्टि बचाकर वहाँ से भाग निकली। मैं अत्यन्त निराश थी, इसलिए मैंने मर जाना ही अपने लिए श्रेयस्कर समझा, पर, मेरा यह सौभाग्य है, पुण्योदय है, ज्यों ही मैंने मरने के लिए फांसी लगाने का प्रयास किया, लक्ष्मण मेरे सामने आ गए और मुझे मरने से बचा लिया।"
वनमाला सीता के साथ बातचीत कर रही थी, इतने में राजा महीधर के परिचारक वनमाला की खोज करते वहाँ पहुँचे । वनमाला को देखा, सब ज्ञात किया। वे राजा के पास गये और उसको सारा वृत्तान्त कहा । सुनकर राजा महीधर बहुत प्रसन्न हुआ। वह राम, सीता और लक्ष्मण के पास आया। उनको बड़े अनुनय विनय के साथ अपने महल में लाकर ठहराया। वनमाला और लक्ष्मण का पाणिग्रहण हआ। इससे राज-परिवार में, प्रजाजन में सर्वत्र आनन्द छा गया।
उसी समय की बात है, नन्दावर्त नगर के राजा अतिवीर्य ने राजा महीधर के पास अपना दूत भेजा और सूचित किया कि अयोध्या के राजा भरत के साथ हमारा युः होगा। सेना सहित शीघ्र हमारे यहाँ आओ । लक्ष्मण ने दूत से सारी स्थिति की जानकारी चाही। दत ने बताया कि राम, लक्ष्मण के अयोध्या से बाहर होने का अनचित लाभ उठाने की दष्टि से हमारे राजा ने भरत को सूचित किया कि वे उसकी अधीनता स्वीकार करें। इस पर भरत क्रोधित हो गया, दूत का अपमान किया। उसे वहाँ से निकाल दिया; अतएव राजा
र्य सेना इकट्ठी कर रहा है। वह भरत से लडेगा। महीधर का सहयोग मांग रहा है। महीधर ने दूत से कहा--"तुम जाओ, हम आ रहे हैं।"
राम ने महीधर को बताया- 'भरत हमारा भाई है। यह एक समय है, हम उसकी सहायता करें । आप अपने पुत्र को हमारे साथ कर दें। हम अतिवीर्य से युद्ध करेंगे।"
महीधर ने अपना पुत्र राम और लक्ष्मण को सौंप दिया। राम, लक्ष्मण नंदावर्त नगर के बाहर पहुंचे। सायंकाल वहाँ डेरा डाला। प्रातः उस क्षेत्र का अधिष्ठाता देव राम के समक्ष उपस्थित हुआ और अपना सहयोग करने का विनम्र भाव व्यक्ति किया। देव ने कहा"मैं आप सबको स्त्रियों के रूप में परिणत कर दूं ताकि राजा अतिवीर्य की घोर अपकीति हो कि वह स्त्रियों से हार गया।" ऐसा ही हुआ । स्त्री के रूप में विद्यमान लक्ष्मण ने हाथी बाँधने का लोहे का मोटा कीला उखाड़कर सभी सामन्तों को मार-मार कर भगा दिया। राजा अतिवीर्य से कहा-'मूर्ख ! तुम अहंकार का त्यागकर राजा भरत की अधीनता स्वीकार कर लो।"
इस पर राजा अतिवीर्य ने तलवार निकाली। लक्ष्मण ने एक हाथ से उसकी तलवार छीन ली और दूसरे हाथ से वे राम के पास उसे घसीटते हुए लाये। सीता ने उसे दयावश मुक्त कराया। अतिवीर्य को संसार से वैनाग्य हो गया। उसने राम के आदेश से अपने पुत्र विजयरथ का राज्याभिषेक कर दिया और वह स्वयं प्रव्रजित हो गया। अतिवीर्य के पुत्र राजा विजयरथ ने भरत की अधीनता स्वीकार कर ली।
राम, सीता और लक्ष्मण कुछ दिन महीधर की राजधानी विजयापुरी में रहे । वे
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