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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड:३
दिलवा दिया और उन दोनों में परस्पर मेल करवाया। विजय व्यापारी को रानी के कुंडल दिलवा दिए।
राम सीता और लक्ष्मण वहाँ से विदा हए. कपचंद्र नामक उद्यान में पहुंचे। वहाँ सीता को क्षुबा, तृषा अनुभव हुई। लक्ष्मण पानी लाने सरोवर पर गया । वहाँ पहले से ही एक राजकुमार आकर ठहरा था। राज कुमार के परिचर लक्ष्मण को राजकुमार के पास ले गये । राज कुमार ने लक्ष्मण का सम्मान किया। लक्ष्मण परिचय प्राप्त कर प्रसन्न हआ। उसने राम और सीता को बड़े आदर के साथ वहाँ बुलवाया, भोजन आदि से सत्कार किया। राजकूमार ने राम से निवेदन किया-"इस नगर का नाम कुबेर पुर है। राजा बालि खिल यहाँ राज्य करता था। एक बार म्लेच्छाधिपति इन्द्रभूति से बालिखिल का युद्ध हुआ। म्लेच्छाधिति राजा को बन्दी बनाकर ले गया। उस समय बालि खिल की रानी पृथिवी गर्भवती थी। अवन्ती-नरेश सीहोदर ने, जिसके राष्ट्र के अन्तर्गत यह राज्य था, वहा कि गर्भवती रानी के यदि पुत्र उत्पन्न होगा तो यह राज्य उसे दिया जायेगा, गनी के यदि पुत्रा हुई तो इसे अवन्ती राष्ट्र में मिला लिया जायेगा। रानी के गर्भ से पुत्री के रूप में मेरा जन्म हुआ । राज्य को स्वायत्त रखने हेतु मुझे पुत्र के रूप में घोषित किया गया। मेरा नाम कल्याण माली रखा गया। यह गुप्त रहस्य मेरी माता तथा अमात्य के अतिरिक्त किसी को ज्ञात नहीं था। बड़े होने पर मुझे पुरुष के वेष में राज-सिंहासन पर बिठाया। मैंने अपना यह भेद सदा गुप्त रखा। इस समय मैं आपके सामने प्रकट कर रही हूँ। मैं तरुण हो गई हूँ। कृपा कर आप लक्ष्मण के लिए मुझे स्वीकार करें।"
राम ने कहा--"तुम कुछ समय पुरुष-वेष में राज्य-शासन करती रहो। हम विन्ध्याटवी जाते हैं, तुम्हारे पिता को मलेच्छ राज से मुक्त करा लाते हैं । यथा समय लक्ष्मण के साथ तुम्हारा पाणिग्रहण करा देंगे।"
राम सीता और लक्ष्मण विन्ध्याटवी पहुँचे । लक्ष्मण ने म्लेच्छराज को ललकारा। युद्ध छिड़ गया। लक्ष्मण ने बाणों की भीषण वर्षा की । म्लेच्छ राज को पराजित कर दिया। राम की आज्ञा से राजा बालिखिल बन्धन-मुक्त कर दिया गया।
उन्होंने बालिखिल को उसके नगर में पहुँचा दिया तथा वन की ओर चल पड़े । राम, लक्ष्मण, सीता अरुण नामक गाँव में कपिल नामक ब्राह्मण के घर गए। ब्राह्मणी ने ठण्डा जल पिलाया तथा सत्कार किया। इतने में ब्राह्मण आया। वह अपनी स्त्री को गाली निकालता हुआ उपालंभ देने लगा-"इन म्लेच्छों को यहां क्यों ठहराया ? मेरा घर अपवित्र हो गया।" लक्ष्मण को उस पर बड़ा क्रोध आया। उसने ब्राह्मण की टांग पकड़ी और उसे घुमाना शुरू किया। राम ने ब्राह्मण को छुड़वाया। तीनों वहाँ से वन की ओर चल पड़े।
वे चलते-चलते बहुत दूर निकल गए। भयानक जंगल में पहुँचे । आकाश में घनघोर घटाएं गरजने लगीं, बिजली चमकने लगी, मूसलधार पानी बरसने लगा। सर्दी से जब देह कांपने लगी तो राम, सीता तथा लक्ष्मण एक सघन बरगद के पेड़ के नीचे चले गए। उस वृक्ष में एक यक्ष रहता था। वह राम, लक्ष्मण का तेज नहीं सह सका। वह अपने स्वामी बड़े यक्ष के पास गया और उसे यह कहा। बड़े यक्ष ने अवधि-ज्ञान का प्रयोग किया। उसे सारी स्थिति का ज्ञान हो गया । उसने देव-शक्ति द्वारा उनके लिए पलंग, बिछौने आदि सब प्रकार की सुविधा प्राप्त करा दी।
वे जब सवेरे उठे, तब यक्ष द्वारा निर्मित वैभव शाली सुन्दर नगर देखा । उन्हें
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