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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड: ३
भरत द्वारा राम को वापस लौटाने का असफल प्रयास
पति दीक्षित हो गए, पुत्र वनवासी हो गए, यह अपराजिता-कौशल्या तथा सुमित्रा के लिए अत्यन्त शोक का विषय था । वे बड़ी खिन्न तथा दुःखित रहने लगीं। यह देखकर कैकेयी ने भरत से कहा-"पुत्र ! वन में जाओ तथा राम, लक्ष्मण और सीता को वापस लाओ। अब मैं अनुभव करती हैं, उनके बिना तुम्हारा राज्य करना शोभित नहीं होता।" यह सुनकर भरत अपनी माता कैकेयी को साथ लेकर राम की खोज में वन को चल पड़ा । उसने गंभीरा नदी को पार किया और वह वहाँ पहुँचा, जहाँ राम, सीता और लक्ष्मण थे। भरत घोड़े से नीचे उतरा । राम के चरण छूए । आँखों में आँसू भरकर उनसे प्रार्थना की आप मेरे लिए पिता के समान पूज्य हैं, आप अयोध्या चलें, राज्य करें, मैं तथा शत्रुघ्न आपके छत्रवाही तथा चामरवाही होंगे, लक्ष्मण अमात्य होंगे।"
कैकेयी रथ से नीचे उतरकर वहाँ आई, राम को सम्बोधित कर कहने लगी- "मुझ से अपराध हुआ, क्षमा करो, अयोध्या का राज्य स्वीकार करो।"
राम ने कहा-~-"माँ, यह संभव नहीं है। हम क्षत्रिय हैं, कहा हुआ वचन नहीं बदलते।" राम ने भरत को राज्य करने का आदेश दिया और सब को वापस लौटा दिया।
राम, सीता और लक्ष्मण कुछ समय उस भयानक वन में रहे । फिर वहाँ से क्रमशः चलते-चलते अवन्ती देश में पहुँचे। वहां उन्होंने एक नगर देखा, जो बिलकुल निर्जन था। नगर में धन, धान्य, दूध, गाय, भैंस, बैल, बकरी आदि सब मौजूद थे, पर, मनुष्य एक भी नहीं था। उनको बड़ा अचरज हुआ, यह क्या स्थिति है ?
राम और सीता एक वृक्ष की ठंडी छाया में बैठे। लक्ष्मण नगर के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करने हेतु एक दूर से आते हुए खिन्न पथिक को बुलाकर राम के समीप लाया। राम ने पथिक से नगर के सूने हो जाने कारण पूछा । पथिक ने बताया---''यह दशपुर राज्य का एक नगर है। वनजंघ नामक राजा राज्य करता था। वह बड़ा न्याय-परायण था, पर, उसे आखेट की बुरी आदत थी। एक दिन आखेट करते राजा ने एक गर्भवती हरिणी पर प्रहार किया। हरिणी गिर पड़ी। राजा ने जब उसके तड़फते हुए गर्भ की ओर दृष्टिपात किया तो वह अत्यन्त दु:खित हुआ। उसका हृदय ग्लानि से चीत्कार कर उठा। उसके मन में विरक्ति उत्पन्न हुई । वह आगे बढ़ा और उसने देखा, एक पाषाण-शिला पर मुनि बैठे हैं। राजा ने मुनि को वन्दन किया। मुनि ने राजा को प्रतिबोध दिया। राजा ने सम्यक्त्व प्राप्त किया, गहि-धर्म अंगीकार किया। राजा अपनी राजधानी में लौटा । वह उपासक धर्म का परिपालन करता हुआ न्याय-पूर्वक राज्य करने लगा। उसने अपनी मुद्रिका में मुनि सुव्रत स्वामी की प्रतिकृति अंकित करवा ली । राजा ने अन्य किसी को नमस्कार न करने का व्रत लिया। दशपुर राज्य अवंती राष्ट्र के अंतर्गत था। अवन्ती का राजा सीहोदर था । वज्रजंघ सीहोदर का अधीनस्थ राजा था। जब वज्रजंघ सीहोदर को नमस्कार करता तो उसका आन्तरिक भाब जिन-वन्दन का होता। वनजंघ के किसी शत्रु ने सीहोदर के समक्ष यह चुगली की कि वज्रजंघ आपको नमस्कार नहीं करता। वह केवल वैसा प्रदर्शन करता है। यह सुनकर सीहोदर बड़ा क्रुद्ध हुआ। उसने दशपुर पर आक्रमण करने का निश्चय किया।
इसी बीच एक व्यक्ति भागता हुआ वज्रजंघ के पास आया तथा उससे कहा कि सीहोदर आप पर आक्रमण करने आ रहा है। अपना परिचय देते हुए उस पुरुष ने बताया
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