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३६४ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : ३ है, जहाज में पण्य-सामग्री-रहित सार्थवाह होता है, वैसे ही पुत्रों के बिना मैं अपने आपको दुःखी अनुभव करता हूँ।"
पुरोहित-पत्नी यशा का अनुरोध
इस पर पुरोहित की पत्नी यशा ने अपने पति से कहा- "हमें उत्तम रस-पूर्ण प्रशस्त काम-भोग पर्याप्त रूप में प्राप्त हैं । हम उनका छक कर भोग करें। तदनन्तर हम मोक्ष का अवलम्बन करें।"
पुरोहित बोला-"हम सांसारिक सुखों का रस भोग चुके हैं। यौवन हमें छोड़कर चला गया है। ये भोग जीवन के कल्याण के लिए नहीं हैं । अब मैं स्वयं इनका परित्याग कर जीवन के सच्चे लाभ और अलाभ, वास्तविक सुख एवं दुःख को समझ कर मुनि-व्रत स्वीकार करूंगा।"
ब्राह्मणी ने कहा-"जैसे प्रतिस्रोतगामी--प्रवाह की विपरीत दिशा में जानेवाला वृद्ध हंस पछताता है, उसी प्रकार श्रमण-धर्म, जो जगत् के लिए प्रतिस्रोत है, स्वीकार कर आपको फिर अपने सम्बन्धियों तथा उनके साथ परिभुक्त सुखों को स्मरण कर कहीं पछताना न पड़े; इसलिए मेरा अनुरोध है, मेरे साथ सांसारिक सुखों का सेवन करो; क्योंकि भिक्षा द्वारा जीवन-निर्वाह और पाद-विहार बहुत दुःखप्रद हैं।"
पुरोहित द्वारा समाधान
पुरोहित ने कहा-"जैसे साँप अपना केंचुल छोड़ मुक्त होकर भाग जाता है, उसी प्रकार मेरे दोनों पुत्र सांसारिक भोगों का परित्याग कर जा रहे हैं । ऐसी स्थिति में मैं उनका अनुगमन क्यों न करूं, क्यों न उनके साथ ही दीक्षित हो जाऊं।
"जिस प्रकार रोहित मत्स्य कमजोर, जीर्ण जाल को काट कर उसमें से निकल जाता है, उसी प्रकार मेरे ये पुत्र काम-भोगों का परित्याग कर जा रहे हैं। ये उच्च जातीय वृषभ के सदृश हैं, जो अपने गृहीत भार को ले चलने में समर्थ, उदार एवं धीर होते हैं। इसी उच्च भाव से ये कुमार भिक्षाचर्या का मार्ग-श्रमण-जीवन स्वीकार कर रहे हैं।"
यशा द्वारा पति एवं पुत्रों का अनुसरण
पुरोहित की पत्नी यशा ने देखा--जैसे क्रौञ्च पक्षी आकाश को समतिक्रान्त कर जाते हैं, लांघ जाते हैं, जालों को काटकर हंस उड़ जाते हैं, उसी प्रकार मेरा पति और मेरे पुत्र श्रमण जीवन स्वीकार करने जा रहे हैं, फिर मैं उनका अनुसरण क्यों न करूं, अकेली इस संसार में क्यों रहे।
रानी द्वारा राजा को प्रतिबोध
। अन्ततः पुरोहित अपनी पत्नी तथा पुत्रों के साथ अभिनिष्क्रान्त हो गया-सांसारिक सुख छोड़ प्रजित हो गया। उसकी विपुल, महर्ष सम्पत्ति लेने जब राजा उद्यत होता है, तब रानी उसे पुनः-पुनः समझाती है, कहती है-"राजन् ! जो पुरुष वमन किया हुआ पदार्थ खाता है, वह कभी प्रशंसित नहीं होता। ब्राह्मण ने जिस धन का परित्याग कर दिया, वमन कर दिया, आपं उसे खाना चाहते हैं, आपके लिए यह उचित नहीं है । यह सारा
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