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________________ तत्त्व : माचार : कथानुयोग ] कथानुयोग-चित्त और संभूत : चित्त-संभूत जातक ३७५ सावधान कर दिया तथा ब्रह्मदत्त इस संकट से बच गया। राजा दीर्घ ने ब्रह्मदत्त को समाप्त करने हेतु और भी अनेक उपाय किये, षड्यन्त्र रचे, पर, सब निष्फल गये । ब्रह्मदत्त : चक्रवर्ती पद राजकुमार ब्रह्मदत्त ने कुछ समय के लिए विदेश जाने का विचार किया। वह रवाना हुआ। विदेश में उसने अनेक राजकन्याओं के साथ पाणिग्रहण किया तथा अनेक राजाओं से मैत्री सम्बन्ध स्थापित किये। बहुत से राजाओं की सेना साथ लेकर कुमार ब्रह्मदत्त वापस काम्पिल्यपुर आया। आते ही उसने दीर्घ राजा को मार डाला और राज्य स्वयं सम्हाल लिया। ब्रह्मदत्त को क्रमशः चतुर्दश रत्नों की प्राप्ति हुई, जिनके प्रभाव से उसने छः खण्ड पृथ्वी पर विजय प्राप्त की, चक्रवर्ती पद धारण किया । जाति-स्मरण-ज्ञान की उत्पत्ति : भाई का अन्वेषण एक समय ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती नाटक देख रहा था। उसे देवलोक के नाटक की स्मृति हुई। उसको जाति-स्मरण-ज्ञान उत्पन्न हुआ। उसने इस ज्ञान द्वारा अपने प्रिय भ्राता चित्त को पांच भवों तक तो अपने साथ ही देखा किन्तु छठे भव में उसे अपने साथ नहीं देखा । उसने अपने भाई का अन्वेषण करना चाहा। इस हेतु उसने गोपदासो मृगौ हंसी मातंगावमरौ तथा—यों एक श्लोक के दो चरण बनाकर लोगों को सिखला दिये । चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त ने यह घोषित किया कि जो इस श्लोक के आगे के दो चरण बनाकर लायेगा, उसे मैं अपना आधा राज्य दूंगा। यह तो हुआ, पर, काफी समय तक कोई भी उस श्लोक के उतरार्द्ध की पूर्ति कर नहीं ला सका। चित्त : वीक्षा : अवधि ज्ञान उस समय चित्त मुनि दीक्षा ले चुके थे तथा उन्हें अवधि-ज्ञान भी प्राप्त हो चुका था उन्होंने अवधि-ज्ञान का उपयोग लगाया और उससे यह जाना कि उनका भाई चक्रवर्ती है। उससे मिलने हेतु उग्र विहार करते हुए वे वहाँ आये। काम्पिल्यपुर नगर के बाहर एक उद्यान में ठहरे। श्लोक पूर्ति एक कृषक कूप से पानी निकाल रहा था, अपना खेत सींच रहा था। जब वह पानी छोड़ता तो वही आधा श्लोक-श्लोक का पूर्वार्द्ध उच्चारित करता। मुनि ने उसे बुलाकर पूछा कि तुम श्लोक के आगे का भाग-उतरार्द्ध-क्यों नहीं बोलते? कृषक ने मुनि से ही वह श्लोक पूरा करने की अभ्यर्थना की । तब मुनि ने "एषानौः षष्ठिका जातिरन्योन्याभ्यां वियुक्तयोः। इस प्रकार श्लोक का उतरार्द्ध बतलाया। चक्रवर्तीद्वारा मुनि दर्शन वह किसान चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त के पास आया तथा पूरा श्लोक सुनाया। राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। वह सोचने लगा-क्या मेरे भाई ने किसान के घर में जन्म लिया है ? ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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