________________
Xxxviii
आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
Jain Education International 2010_05
अपहरण
विदेहराज की भर्त्सना
मूढ़ चिन्तन
आश्वासन
निष्क्रमण
पाञ्चाल चण्डी का अभिषेक
सहचरता : शालीनता
मिथिला प्रयाण
ब्रह्मदत्त का क्षोभ
महौषध का प्राकट्य : व्यंग्योक्ति
निरर्थक धमकी
सार्थक प्रतिवचन
कामावेश : दु:सह आघात
हतप्रभ ब्रह्मदत्त
मैत्री बन्ध
बोधिसत्त्व की करुणा
स्वामिभक्ति का आदर्श
विदाई : प्रस्थान
मिथिला आगमन
सप्त दिनोत्सव प्रतिप्रेषण
महौषध का पाञ्चाल - गमन भेरी परिव्राजिका
नन्दादेवी द्वारा प्रतिशोध
भेरी द्वारा सांकेतिक परीक्षा
मिथ्या आरोप
परिव्राजिकाद्वारा समाधान
महौषध का संशय
परिव्राजिका का प्रश्न सर्वातिशायी महौषध
सार
५. चित्त और संभूत: चित्तसंभूत जातक
चित्त और संभूत
श्रमण मुनिचन्द्र
गोपालों द्वारा श्रमण-दीक्षा
उत्तर- भव
मन्त्री नमुचि
For Private & Personal Use Only
[ खण्ड : ३
३३२
३३३
३३७
३३६
३४०
३४१
३४२
३४३
३४४
३४६
३४७
३४८
३५१
३५२
३५३
३५४
३५६
३५७
३५८
३५६
३६०
३६१
३६१
३६१
३६२
३६२
३६३
३६४
३६५
३६५
३७०
३७१-३८७
३७१
३७१
३७२
३७२
३७२
www.jainelibrary.org