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________________ xxxii २. आचार आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन स एवं स्थावर जीवों की हिंसा से निवृत्ति वानस्पतिक जगत् : हिंसा परिहार अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य मुनि की आदर्श भिक्षा-चर्या मिक्षु की व्यवहार चर्या भिक्षु जीवन के आदर्श श्रमण का स्वरूप : समता : पापशमन अशन, पान आदि का असंग्रह रात्रि भोजन का निषेध संयम और समता स्नेह के बन्धन तोड़ दो Jain Education International 2010_05 उत्तराध्ययन: सम्बद्ध घटनांश : तथ्य हस्तिपाल जातक : सम्बद्ध घटनांश : तथ्य दोष-वर्जन : सद्गुण- अर्जन संयमी की अदीनताः सामर्थ्य संयम सर्वोपरि सत्पथ-दर्शन वैराग्य-चेतना आत्मविजय : महान् विजय चारित्र्य की गरिमा अभ्युदय के सोपान कुद्दाल जातक : सम्बद्ध कथानक मैत्री और निर्वेद भाव भावनाएँ समय जा रहा है जागते रहो सतत जागरूक अकेले ही बढ़ते चलो साधक यतना से कार्यं करे प्रमाद मत करो प्रमाद : अप्रमाद For Private & Personal Use Only [ खण्ड : ३ ७७- १३८ ७७ ७७ ७६ ब ६ ६१ ६ १ ६२ ६३ ६४ ६५ ६५ ६७ १०० १०० १०१ १०१ १०५ १०८ ११० ११२ ११२ ११३ ११४ ११६ ११६ ११७ ११८ ११६ १२० १२० १२१ www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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