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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : ३
हुआ तो उसे मन-ही-मन क्रोध तो बहुत आया, पर, यह सोचकर कि महौषध कहीं दूर भाग गया है, इन चारों के अतिरिक्त और कोई पण्डित मन्त्री उसके यहां है नहीं, यह सोचकर राजा ने और कुछ कहा नहीं, केवल इतना ही कहा-“स्नान कर अपने घर चले जाओ।" छत्रवासिनी देवी द्वारा प्रेरणा
विदेह के श्वेत छत्र में तदधिष्ठात्री देवी निवास करती थी। वह बोधिसत्त्व की धर्मदेशना सुनने में बड़ी रुचिशील थी। जब वह नगर से चला गया तो उसे धर्म-देशना सुनने का अवसर नहीं प्राप्त होता था; इसलिए उसने सोचा कि महौषध पण्डित को यहां लाया जाना चाहिए। उसने एक उपाय निकाला। रात्रि-वेला में छत्र की गोलाई के खाली स्थान में वह खड़ी हुई तथा राजा को संबोधित कर उसके समक्ष उसने चार प्रश्न रखे । राजा ने
का उत्तर देने में अपने को असमर्थ पाया: अतः उसने देवी से कहा-"माता ! मैं अपने पण्डितों से पूछकर आपको उत्तर दंगा। कृपा कर एक दिन का अवकाश दें।"
देवी ने कहा--"अच्छा , मैं एक दिन की मुहलत देती हैं।"
राजा ने प्रातःकाल होने पर अपने चारो पण्डितों को आपने हेतु सूचना भिजवाई। पण्डितों ने निवेदन करवाया- "हमारे मस्तक मुंडे हुए हैं; अतः बाजार से निकलते हुए हमें शर्म आती है।" इस पर राजा ने उनको मस्तक ढकने हेतु चार वस्त्र भिजवाये और कहलवाया,-"इन्हें अपने मस्तक पर लपेट कर आ जाओ।" उन्हाने राजा द्वारा भेजे गये वस्त्र अपने-अपने सिर पर बाँध लिये। वे राजा के यहाँ आये, अपने लिए बिछाये गये आसनों पर बैठ गये।
राजा ने सेनक पण्डित को सम्बोधित कर कहा- 'श्वेत छत्रवासिनी देवी ने आज रात मुझे दर्शन दिये। उसने मुझ से चार सवाल पूछे। उनके सम्बन्ध में मैं कुछ भी नहीं जानता था; इसलिए उत्तर नहीं दे सका । मैंने देवी से निवेदन किया है, मैं अपने पण्डितों से उत्तर जानकर निवेदन करूंगा। उनमें से पहला प्रश्न इस प्रकार है-हाथों से पीटता पैरों से पीटता है, मुंह पर मारता है, फिर भी वह प्रिय होता है, ऐसा कौन है।"१
सेनक को इसका उत्तर नहीं आया। वह किंकर्तव्यविमूढ की ज्यों बकवास करने लगा। उसे प्रश्न का न ओर दीखा, न छोर।
दूसरे तीनों पाण्डत भी हतप्रभ हो गये। उन्हें कुछ नहीं सूझा। राजा को बड़ा खेद
हुआ।
रात्रि के समय में फिर देवी ने दर्शन दिये और पूछा- मेरे प्रश्नों का उत्तर खोजा ? ज्ञात हुआ ?"
राजा ने कहा- मैंने अपने यहाँ के चारों पण्डितों से पूछा। वे समाधान देने में सर्वथा असमर्थ रहे।"
देवी ने कहा-"वे क्या उत्तर देंगे। महौषध के अतिरिक्त कोई उत्तर देने में समर्थ नहीं है। यदि तुम उसे वापस बुलवाकर मेरे इन प्रश्नों के उत्तर नहीं दिलवाओगे तो देख रहे हो, मैं इस परितप्त हथौड़े से तुम्हारा सिर तोड़ डालूंगी।"
१. हन्ति हत्थेहि पादेहि मुखञ्च परिसुम्मति ।
स वे राजपियो होति कं तेन अभिपस्सति ॥४२॥
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