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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : ३
राजा को अपनी माता का कथन सुनकर बहुत परितोष हुआ। वह रोहक की जन्मजात प्रतिभा, तीक्ष्ण बुद्धिमत्ता, गहरी सूझबूझ, सूक्ष्म चिन्तन से अत्यधिक प्रभावित हुआ। उसने एक विशाल समारोह आयोजित किया, जिसमें उसने रोहक को अपने प्रधान अमात्य के पद पर मनोनीत किया।
रोहक एक निर्धन नट का पुत्र था। बहुत सामान्य स्थिति में उत्पन्न हुआ था, किन्तु, अपनी असाधारण प्रतिभा और प्रखर बुद्धि के कारण उसने मालव राज्य के प्रधानामात्य का गौरव-पूर्ण पद प्राप्त कर लिया।'
महा उम्मग जातक सन्दर्भ
एक दिन का प्रसंग है, भिक्षु धर्मसभा में बैठे थे। वे तथागत-भगवान् बुद्ध की प्रज्ञा-पारमिता की स्तवना कर रहे थे। वे कहते थे—'आयुष्मानो ! भगवान् बुद्ध महाप्रज्ञाशाली हैं, विस्तीर्ण प्रज्ञाशाली हैं, प्रसन्न प्रज्ञाशाली हैं, शीघ्र प्रज्ञाशाली हैं, तीक्ष्ण प्रज्ञाशाली हैं। उनकी प्रज्ञा अन्तर्वेधन करने वाली है। वह परमत का खण्डन करने में समर्थ हैं। भगवान् बुद्ध ने अपनी प्रज्ञात्मक शक्ति द्वारा ही कूटदन्त आदि ब्राह्मणों का, सहिय आदि परिव्राजकों का, अंगुलिमाल आदि चोरों का, आलवक आदि यक्षों का, शक्र आदि देवों का, बफ आदि ब्रह्माओं का नियमन किया-दमन किया। उन्हें विनत बनाया। तथागत ने अपने प्रज्ञा-बल से ही प्रेरित कर, उबुद्ध कर अनेक व्यक्तियों को प्रव्रजित किया। उनको उत्तम फलयुक्त, सात्त्विक जीवन में संप्रतिष्ठ किया। वे फिर बोले- "हमारे शास्ता भगवान् बुद्ध ऐसे ही परम प्रखर प्रज्ञाशाली हैं।"
भिक्षु बैठे हुए इस प्रकार भगवान् बुद्ध के प्रज्ञाशीलता जैसे उत्तम गुणों का बखान कर रहे थे।
भगवान् बुद्ध उधर आये और उन्होंने उनसे प्रश्न किया-"भिक्षुओ ! तुम लोग यहाँ बैठे हुए क्या वतालाप कर रहे थे?"
भिक्षुओं ने कहा--'भन्ते ! हम आपकी प्रज्ञा की चर्चा कर रहे थे।" ___ इस पर भगवान बुद्ध बोले-"भिक्षुओ ! तथागत न केवल इस समय ही प्रज्ञाशील हैं, इससे पूर्ववर्ती समय में भी, जब उनका ज्ञान सर्वथा परिपक्व नहीं था, वे जब बुद्धत्वप्राप्त हेतु प्रयत्न-रत थे, उस स्थिति में भी वे परम प्रज्ञाशील थे।" यह कह कर तथागत ने पूर्व जन्म की कथा का आख्यान किया
बोधिसत्व का जन्म
पूर्व समय की बात है, मिथिला में विदेह नामक राजा राज्य करता था। उसके यहाँ सेनक, पुक्कुस, काविन्द एवं देविन्द नामक चार पंडित थे, जो अर्थ एवं धर्म के अनुशासन में अधिकृत थे।
बोधिसत्त्व के गर्भ में आने का दिन था। प्रातःकाल होने को था। राजा को एक स्वप्न आया, उसने देखा-राज-प्रांगण में चार अग्नि-स्कन्ध थे। वे चारों प्राचीर जितने उठकर
१. आधार-नन्दीसूत्रः मलय गिरि वहद् वृत्ति, आवश्यक चणि
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