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________________ ६८ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : ३ है, वह संसार के पार पहुँच जाए-जन्म-मरण से छूट जाए, किन्तु, वैसा हो नहीं पाता, वह संसार-सागर में भटकता रहता है।' सूत्रकृतांग के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के प्रथम-पुण्डरीक अध्ययन में तज्जीवतच्छरीरवाद, पञ्चमहाभूतवाद, ईश्वरकारणवाद-आत्माद्वैतवाद तथा नियतिवाद का विशेष विवेचन है। सूत्रकृतांग प्रथम श्रुतस्कन्ध के बारहवे-समवसरण अध्ययन में एकान्त-अज्ञानवाद, एकान्त-विनयवाद, एकान्त-अक्रियावाद, एकान्त-क्रियावाद तथा सम्यक्-क्रियावाद की चर्चा एवं समीक्षा है। ___ नियुक्तिकार ने इस सन्दर्भ में क्रियावाद के १८०, अक्रियावाद के ८४, अज्ञानवाद के ६७ तथा विनयवाद के ३२ भेदों की चर्चा की है । वृत्तिकार ने इन १८०+८४+६७+ ३२=३६३ (तीन सौ तिरेसठ) भेदों का नामाल्लेख करते हुए पृथक्-पृथक् प्रतिपादन किया है। यह भेद-क्रम थोड़े-थोड़े सैद्धान्तिक अन्तर पर आषत है। संयुत्त निकाय में विभिन्न मतों की चर्चा तज्जीव तच्छरीरवाद भगवन् तथागत ने भिक्षुओं को संबोधित कर कहा.-"भिक्षुओ ! जानते हो, जो जीव है, वही शरीर है, ऐसी मिथ्या-दृष्टि किस कारण पैदा होती है ?" "भन्ते ! आप ही धर्म के मूल है, आप ही जानते हैं।" "भिक्षुओ ! रूप आदि का नित्यत्व स्वीकार करने से ऐसी मिथ्यादृष्टि पैदा होती है।" जीवान्य शरीरवाद भगवान् तथागत ने भिक्षुओं को संबोधित कर कहा-"भिक्षुओ! जानते हो, जीव अन्य है तथा शरीर अन्य है, ऐसी मिथ्या-दृष्टि किस कारण उत्पन्न होती है ?" "भन्ते ! धर्म के मूल आप ही हैं, आप ही जानते हैं।" "भिक्षुओ ! रूप आदि का नित्यत्व स्वीकार करने से ऐसी मिथ्यादृष्टि उत्पन्न होती है।"3 अनन्तवाद भगवान् तथागत ने भिक्षुओं को संबोधित कर कहा-"भिक्षुओ ! जानते हो, यह लोक अनन्त है, ऐसी मिथ्यादृष्टि किस कारण उद्भूत होती है ?" "भन्ते ! धर्म के मूल आप ही हैं, आप ही जानते हैं।" १. सूत्रकृतांग १.१.२.३१-३२ २. संयुत्त निकाय पहला भाग-तं जीवं तं सरीरं सुत्त २३.१.१३ ३. संयुत्त निकाय-अचं जीवं अझं सरीरं सुत्त २३.१.१४ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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