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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड : २
रूप में इसी श्रेणी के शब्द रहे होंगे । इन सांयोगिक ध्वनियों में से अधिकांश के आद्य अक्षर औष्ठ्य हैं । सहसा कोई बच्चा कोई ध्वनि उच्चारित करने को ज्यों ही तत्पर होता है, होठ खुल जाते हैं । अनायास उसके मुंह से जो ध्वनि निःसृत होती है, प्राय: औष्ठ्य होती है; क्योंकि वैसा करने में उसे अपेक्षाकृत बहुत कम श्रम होता है ।
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स्वीट ने प्रतीकात्मक शब्दों की श्रेणी में कतिपय सर्वनाम शब्दों को भी समाविष्ट किया है । उनकी निष्पत्ति सांयोगिक है, पर उन अर्थों के लिए वे गृहीत हो गये । फलतः उनका एक निश्चित अर्थ के साथ ज्ञाप्य ज्ञापक सम्बन्ध स्थापित हो गया । उदाहरण के लिए संस्कृत के त्वम् (तुम) सर्वनाम को लिया जा सकता है । ग्रीक में यह To, लैटिन में fu, हिन्दी में तू अंग्रेजी में Thow होता है । इसी प्रकार संस्कृत में यह और वह वाचक सर्वनाम 'इदम्' और 'अदस हैं 1 अंग्रेजी में इसके स्थान पर This और That हैं तथा जर्मन में Dies और Das I स्वीट ने बहुत-सी क्रियाओं को निष्पति के सम्बन्ध में भी प्रतीकात्मकता के आधार पर विचार किया है ।
सार: समीक्षा
भाषा के सन्दर्भ में यह मानव की आदिम अवस्था का प्रयास था । इसके अनुसार सम्भव है, आरम्भ में 'प्रतीक' कोटि के अनेक शब्द निष्पन्न हुए होंगे । उनका प्रयोग भी चलता रहा होगा । उनमें से जो शब्द अभीप्सित अर्थ की अभिव्यंजना में सर्वाधिक सक्षम, उच्चारण और श्रवण में समीचीन नहीं रहे होगे, धीरे-धीरे वे मिटते गये होंगे और जो (शब्द) उक्त अर्थ में अधिक सक्षम एवं संगत प्रतीत हुए होगें, उन्होंने भाषा में अपना अमिट स्थान बना लिया होगा । जैसे, प्रकृति-जगत् और जीव-जगत् में सर्वत्र Survival of the fittest = योग्यतमावशेष का सिद्धान्त लागू है, उसी प्रकार शब्दों के जगत् में भी वह व्याप्त है । वहां भी योग्यतम या उपयुक्त का ही अस्तित्व रहता है, अन्य सब धीरे-धीरे अस्तित्वहीन होते जाते हैं | प्रतीकात्मक शब्द जो भाषा में सुरक्षित रह पाये हैं, वे आदि सृष्ट शब्दों में से थोड़े से हैं ।
स्वीट ने जिन तीन सोपानों का प्रतिपादन किया है, एक सीमा विशेष तक भाषा की संरचना में उनकी उपयोगिता है । इस प्रसंग में इतना आवश्यक है कि स्वीट ने विभिन्न धातुओं तथा सर्वनामों के रूपों की प्रतीकात्मकता से जो संगति बिठाने का प्रयत्न किया है, वह यथार्थ का स्पर्श करता नहीं लगता । इसके अतिरिक्त एक बात और है, स्वीट द्वारा उक्त तीनों सोपानों के अन्तर्गत जिन शब्दों का उद्भव व्याख्यात हुआ है, उसके बाद भी उन ( तीनों ) से कई गुने शब्द और हैं, जिनके अस्तित्व में आने की कारण परम्परा अज्ञात रह जाती है । अनुकरण, मनोभावाभिव्यंजन तथा प्रतीक; इन तीनों कोटियों में वे नहीं आते । पूर्व चर्चित अनुकरण और आकस्मिक भाव प्रसूत शब्द संख्या में थोड़े से हैं । उसी प्रकार
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