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________________ ६३५ भाषा और साहित्य ] विश्व भाषा-प्रवाह में भावों का उद्रेक निश्चय ही होता है। हर्ष, विषाद, क्रोध, घृणा, ईर्ष्या, विस्मय आदि का आधिक्य सहज ही मानव को भाषावेश में ला देता है। प्राचीन काल का मानव जब इस प्रकार भावाविष्ट हो जाता, अनायास ही कुछ शब्द उसके मुख से निकल पड़ते। यह एक स्वाभाविक प्रवृत्ति थी, अतएव अप्रयत्न-साध्य थी। ओह, आह, उफ, छिः, धत् आदि शब्द इसी प्रकार के हैं। संस्कृत में आ:1 ( कोप, पीड़ा ), घिङ (निर्भत्सना, निन्दा ), बस ३ (खेद, अनुकम्पा, सन्तोष ), हन्त ( हर्ष, अनुकम्पा, विषाद ), साभि ( जुगुप्सित ), जोषं (नीरवता, सुख ), अलं' ( पर्याप्त, शक्ति वारण-निषेध ), हूं (वितर्क, परिप्रश्न ), हा (विषाद), अहह! ( अद्भुतता, खेद ), हिररुङ ( वर्जन ', आहो, उताहो12 (विकल्प ), अहा, ही13 ( विस्मय ) तथा ऊ14 (प्रश्न, अनुनय ) इत्यादि आकस्मिक भावों के द्योतक हैं । इनकी उत्पत्ति में भी उपयुक्त सिद्धान्त किसी अपेक्षा से संगत हो सकता है। अंग्रेजी में Ah, Oh, Alas, (Surprise, fear or regret = विस्मय, भय या खेद), Rish ( Contempt = अवज्ञा ), Pooh ( disdain or contempt = घृणा या अवज्ञा तथा Fie ( Disgurt = जगप्सा ) आदि का प्रयोग उपयुक्त सन्दर्भ में होता है। अंग्रेजी व्याकरण में ये Interjections ( विस्मयादिबोधक ) कहलाते हैं। इसी कारण यह सिद्धान्त ( Interjectional Theory) के नाम से विश्रुत है। इस सिद्धान्त का १. आस्तु स्यात् कोपपीड़योः। -अमरकोश, तृतीय काण्ड, नानार्थवर्ग, पृष्ठ २४० २. घिङ निर्भत्सननिन्दयौः। -वही, पृ० २४० ३. खेदानुकम्पा सन्तोषविस्मयामन्त्रणे बत। -वहो, पृ० २४४ ४. हन्त हर्ष अनुकम्पायां वाक्यारम्भविषादयो :। -वही, पृ० २४४ ५. साभि त्वद्धे जुगुप्सिते । -वही, पृ० २४९ ६. तुष्णीमर्थे सुखे जोषम् । -वही, पृ० २५१ ७. अलं..."पर्याप्तशक्तिवारणवाचकम् । —वही, पृ० २५२ ८. हुं वितर्के परिप्रश्ने। –वही, पृ० २५२ ९. हा विषादाशुगतिषु । -वही, पृ० २५६ १०. अहहेत्यद्भुते खेदे। -वही, तृतीय कांड, अव्यय वर्ग, श्लो० ७ ११. हिरङनाना न—वर्जने। -वही, श्लो० ७ १२. आहो उताहो किमुत विकल्पे किं किमुत च ।—बही, श्लो० ५ १३. अहो ही च विस्मये ।-वही, श्लो० ९ १४. ऊ प्रश्ने 5 नुनये त्वयि । -वही, श्लो० १८ ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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