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________________ भाषा और साहित्य ] विश्व भाषा-प्रवाह [ २९ कल्पना अभिनव चिन्तन की स्फुरण है, पर, यहाँ कवितामूलक कल्पना नहीं है। उसके पीछे ठोस आधार चाहिए। भाषा का विकास वैज्ञानिक पृष्ठभूमि पर आघृत है। क्या था, कैसे था, कैसे हुआ, कैसा है; भाषा के सन्दर्भ में इन सबका समाधान होना चाहिए । कविता में ऐसा नहीं होता, जैसा कि विख्यात काव्यशास्त्री अरस्तू ने त्रासदी (Tragedy) और कामदी (Comedy) के प्रसंग में बतलाया कि जो नहीं है, कल्पना या अनुकृति द्वारा उसको उपस्थित करना काव्य है; अतः काव्य की सृष्टि जागतिक यथार्थ से परे होती है। पर, भाषा-विज्ञान में ऐसा नहीं होता। धातुओं की कल्पना के माध्यम से भाषा के उद्भव का सिद्धान्त संगत नहीं लगता। धातुओं के सन्दर्भ में कुछ और कथनीय है। शब्द जिनसे भाषा निष्पन्न होती है, केवल धातुओं से निर्मित नहीं होते। उपसर्ग, प्रत्यय आदि की भी अपेक्षा रहती है, जिनकी इस सिद्धान्त में कोई चर्चा नहीं है। भारोपीय, सामी आदि भाषा-परिवारों में तो धातुओं का बोध होता है, पर, अनेक ऐसे भाषा-परिवार भी हैं, जिनमें धातुओं का पता ही नहीं चलता। यदि 'धातुवाद' के सिद्धान्त को स्वीकार भी कर लिया जाये, तो विश्व की अनेक भाषाओं की उत्पत्ति की समस्या ज्यों-की-त्यों बनी रहेगी। धातुओं की मान्यता के सम्बन्ध में एक बात और बड़े महत्व को है। जिन भाषाओं में धातुएं हैं, उन भाषाओं के विकसित होने के बहुत समय बाद धातुओं की खोज हुई । वे स्वाभाविक नहीं हैं, कृत्रिम हैं। व्याकरण तथा भाषा-विज्ञान के पण्डितों के प्रयुज्यमान भाषा के संघटन को व्यवस्थित रूप देने के सन्दर्भ में धातु, प्रत्यय, उपसर्ग आदि द्वारा शब्द बनाने का क्रम स्वीकार किया। यह प्रचलित भाषा को परिमार्जित और परिस्कृत रूप में प्रतिपादित करने का विधि-क्रम कहा जा सकता है, जो वैयाकरणों और भाषा-वैज्ञानिकों ने सूक्ष्म तथा गम्भीर अनुशीलन के अनन्तर उपस्थापित किया। प्रो० मैक्समूलर जैसे प्रौढ़ विद्वान् ने इस सिद्धान्त को एक बार स्वीकार करके भी फिर अस्वीकार कर दिया। उसके पीछे इसी तरह की कारण-सामग्री थो, जो भाषा की उत्पति के प्रसंग में कोई ठोस पृष्ठभूमि प्रस्तुत नहीं करती थी। यास्क द्वारा आयात-चर्चा शब्दों की धातुओं से निष्पत्ति के सम्बन्ध में यास्क ने निरुक्त में चर्चा करते हुए कहा"नाम ( शब्द ) आख्यात-क्रिया (धातु ) से उत्पन्न हुए हैं, यह निरुक्त-वाङ गमय है। वैयाकरण शाकटायन भी ऐसा ही मानते हैं। आचार्य गार्य तथा अन्य कतिपय घेयाकरण नहीं मानते कि सभी शब्द धातुओं से बने हैं। उनकी युक्तियां हैं, जिस शब्द में स्वर, धातु, प्रत्यय, लोप, ' आगम आदि सस्कार-संगत हों, दूसरे शब्दों में व्याकरण-शास्त्र की प्रक्रिया के ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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