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राष्ट्रसन्त मुनिश्री नगराजजी डी० लिट्०
जन्म : सरदारशहर ( राजस्थान ) २४ सितम्बर १९१७
प्रव्रज्या : तेरापंथ के अष्टमाचार्य पूज्य काल गणी के करकमलों से सन् १९३४ ।
सम्मान : अरण व्रत परामर्शक पद, १९६२ । कानपुर विश्वविद्यालय द्वारा ऑनरेरी डी. लिट्० १९६९ । राष्ट्रसन्त, सितम्बर १९८१ ।
ग्रभिनिष्क्रमण :
सरदारशहर ( राजस्थान )
६ नवम्बर १९७६ ।
साहित्य-साधना : आगम और त्रिपिटक एक अनुशीलन, अहिंसा, विवेक, जैन दर्शन और आधुनिक विज्ञान अरणव्रत जीवन दर्शन, आचार्य भिक्षु और महात्मा गांधी, नैतिक विज्ञान, नया युग नया दर्शन, यथार्थ के परिपार्श्व में प्रभृति बहुसंख्यक रचनायें, स्फुट लेख व विचार, जो देश के प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं।
लोक हिताय : सुदूर प्राप्तों में प्रलम्ब व सफल पदयात्राएँ । मजदूरों और किसानों में, विद्यार्थी और व्यापारियों में, सर्वसाधारण और राज-कर्मचारियों में, रातकों व प्राध्यापकों में, अधिवक्ताओं एवं न्यायाधीशों में, साहित्यकारों व पत्रकारों में, विधायकों व संसद सदस्यों में नैतिक व चारित्रिक उद्बोधन ।
दिल्ली आपका प्रमुख कार्य-क्षेत्र रही है। शीर्षस्थ लोगों से आपका उल्लेखनीय सामीप्य
रहा है।
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