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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड : २
आदि उसके यथेष्ट पूरक नहीं हो सकते तब मनुष्य विभिन्न वस्तुओं की भिन्न-भिन्न संज्ञाऐं करना चाहता है । एतदर्थं वह शब्दों को निष्पन्न करता है । शब्द द्वारा " संज्ञाकरण" का जो कथन निरुक्तकार करते हैं, उससे यह स्पष्ट झलकता है कि उनकी आस्था किसी ईश्वर-कृत भाषा के अस्तित्व में नहीं थी । यदि कोई भाषा ईश्वर-कृत होती, तो उसमें विभिन्न वस्तुओं के अर्थ- द्योतक शब्द होते ही । वैसी स्थिति में वस्तुओं के संज्ञाकरण या उन्हें नाम देने की मानव को क्या आवश्यकता पड़ती ? व्यवस्थित और ईश्वर - कृत भाषा में किसी भी प्रकार की अपरिपूर्णता नहीं होती । वस्तुओं के नामकरण की तभी आवश्यकता पड़ती है, जब भाषा जैसा कोई प्रकार मानव को प्राप्त नहीं हो । यास्क का कथन इसी सन्दर्भ में प्रतीत होता है ।
भाषा के अनन्य अंग शब्द की उत्पत्ति के सम्बन्ध में यास्क जो मानव - कृतता की ओर इङ्गित करते हैं, यह उनका वस्तुतः बड़ा क्रान्तिकारी चिन्तन है । उनके उत्तरवर्ती महान् बंयाकरण पाणिनि तक भाषा की उत्पत्ति के सम्बन्ध में पुरातन बद्धमूल रूढ धारणा से आगे नहीं बढ़ सके, जब कि यास्क ने उनसे तीन शताब्दी पूर्व ही उपर्युक्त संकेत कर दिया था । इससे स्पष्ट है कि यास्क अपेक्षाकृत अधिक समीक्षक एवं अनुसन्धित्सु थे ।
यास्क के समक्ष उस समय संस्कृत भाषा थी, जो देव-भाषा कहलाती थी । आज भी कहलाती । यास्क ने देव-भाषा की सिद्धि बड़े चमत्कारपूर्ण ढंग से की है । वे लिखते हैं: "मनुष्य वस्तुओं के लिए जो नाम का प्रयोग करते हैं, देवताओं के लिए भी वे वैसे ही हैं ।" 1 तात्पर्य है, मनुष्य की भाषा को देवता भी उसी रूप में समझते हैं । इससे मानवभाषा देव भाषा भी है, ऐसा सिद्ध होता है । संस्कृत के लिये इसी कारण देव भाषा शब्द व्यवहृत है, यहां यास्क का ऐसा अभिप्राय प्रतीत होता है ।
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बौद्ध मान्यता
बौद्ध धर्म का त्रिपिटक के रूप में सारा मूल वाङमय मागधी में है, जो आगे चल कर पालि के नाम से प्रसिद्ध हुई । बौद्धों में सिंहली परम्परा की प्रामाणिकता अबाधित है । सबसे पहले सिंहल ( लंका ) में ही विनय पिटक, सुत्त पिटक तथा अभिधम्म पिटक लिपिबद्ध किये गये 1 सिंहली परम्परा का अभिमत है कि सम्यक सम्बुद्ध भगवान् तथागत ने अपना धर्मोपदेश मागधी ( पालि ) में किया । उनके अनुसार मागधी संसार की आदि भाषा है । आचार्य बुद्धघोष ने इस तथ्य का स्पष्ट शब्दों में उद्घोष करते हुए लिखा है : "मागधी सभी सत्वों— जीवधारियों की मूल भाषा है | "2
१. तेषां मनुष्यवद्द वताभिधानम् ।
२. मागधिकाय सव्वसत्तानं मूलभासाय ।
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- निरुक्त, १, २ विसुद्धिमग्ग
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