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भाषा और साहित्य ] विश्व भाषा-प्रवाह
[ १९ वैदिक मान्यता ___ जो वेद में विश्वास करते हैं, उनकी मान्यता है कि वेद मानव-कृत नहीं हैं, अपौरुषेय हैं। ईश्वर ने जगत् की सृष्टि की, मानव को बनाया, भाषा की रचना की। ऋषियों के अन्तर्मन में ज्ञान का उद्भास किया, जो वेद की ऋचाओं और मन्त्रों में प्रस्फुटित हुआ। इनकी भाषा छन्दस् या वैदिक संस्कृत है, जो अनादि है, ईश्वरकृत है, इसलिये इसे देव-भाषा कहा जाता है। संसार की सभी भाषाए इसी से निकली हैं। यह मानव को ईश्वर-दत्त भाषा है।
संस्कृत के महान वैयाकरण, अष्टाध्यायी के रचयिता पाणिनि ने भी भाषा की ईश्वरतता को एक दूसरे प्रकार से सिद्ध करने का प्रयत्न किया है। उन्होंने व्याकरण के अइउण आदि सूत्रों के विषय में लिखा है : “सनक आदि ऋषियों का उद्धार करने के लिए अर्थात् उन्हें शब्द-शास्त्र का ज्ञान देने के लिये नटराज भगवान् शंकर ने ताण्डव नृत्य के पश्चात् चौदह बार अपना डमरू बजाया, जिससे चौदह सूत्रों की सृष्टि हुई।" इन्हीं चौदह सूत्रों पर सारा शब्द-शास्त्र टिका है। यास्क का सूक्ष्म चिन्तन
पाणिनि से पूर्ववर्ती निरुक्तकार यास्क ( ई० पू०८००) के उस कथन पर इस प्रसंग में विचार करना उपयोगी होगा, जो शब्दों के व्यवहार के सम्बन्ध में है। भाषा की उत्पत्ति की समस्या पर भी इससे कुछ प्रकाश पड़ता है। नाम, आख्यात, उपसर्ग और निपात; इन चार पद-भेदों का विवेचन करते हुए प्रासंगिक रूप में उन्होंने शब्द की भी चर्चा की है। उन्होंने लिखा है : "शब्द अणीयान् है; इसलिए लोक में व्यवहार (काम चलाने) के लिए वस्तुओं का संज्ञाकरण (नाम या अभिधान ) शब्द द्वारा हुआ ।' उन्होंने भाषा की उत्पत्ति के सम्बन्ध में स्वतन्त्र रूप में कुछ भी नहीं लिखा है। हो सकता है, उन्हें यह आवश्यक नहीं लगा हो। इस विषय में वे किसी पूर्व कल्पना या धारणा को लिए हुए हों।
शौकिक जनों को पारस्परिक व्यवहार चलाने के लिए कोई एक माध्यम चाहिए। संकेत
१ अइउण १। ऋल्लक २। एओङ् ३। ऐऔच ४ । हयवरट् ५। लण ६। अमङणनम्
७। झभज ८ । घढर्घष ९। जबगडदश् १०। खफछठथचटत ११ । कपय १२ ।
शषसर १३ । हल १४ ॥ २ नृत्तावसाने नटराजराजो, ननाद ढक्कां नवपंचवारम् ।
उद्धर्तुकामः सनकदिसिद्धानेतद्विमर्श शिवसूत्रजालम् ॥ ३ अणीयस्त्वाच्च शब्देन संज्ञाकरणं व्यवहारार्थलोके ।
-निरुतः १,२
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