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६३२ मागम और विपिटक : एक अनुशीलन के अधिकारी उन्हें पढ़ तक नहीं सकते। सेठजी द्वारा जिज्ञासा किये जाने पर उन्होंने श्रवणवेलगोला निवासी पं० ब्रह्मसूरि शास्त्री का नाम बतलाया कि वे उन्हें पढ़ सकते हैं। सेठजी को बड़ा दुःख हुमा, पर उस समय वे केवल भावना लेकर ही लौट आये।
सेटली का प्रयास
सेठजी एक व्यावसायिक जीवम के घ्यक्ति होने के नाते तत्काल कुछ कर तो नहीं सके, पर उक्त प्रसंग ने उनके मन पर ऐसा प्रभाव डाला कि बम्बई आने के पश्चात उनकी ओर से इस तरफ एक प्रयत्न का शुभारम्भ तो हा । सोलापुर निवासी सैठ हीराचन्द नेमचन्द उनके मित्र थे। वे भी दिगम्बर समाज के एक ख्याति प्राप्त धर्मानगगी एवं समाजसेवी श्रावक थे । सेठ मागिकचन्द ने उन्हें सिद्धान्त-ग्रन्थों के सम्बन्ध में लिखा और चिन्ता प्रकट की। उन्होंने उन्हें स्वयं सिद्धान्त-ग्रन्थों के दर्शन कर पाने की प्रेरणा दी और साथही-साथ अनरोथ किया कि अविलम्ब कोई मा उपाय मोचें, जिससे उन ग्रन्थों का उद्धार हो सके। सेठ हीराचन्द नेमचन्द के मन पर इसका असर दूग्रा । दसरे ही वर्ष वे मडबिद्री की यात्रा पर गये। उन्होंने श्रवगातेलगोला के ० ब्रासरि शास्त्री को भी अपने साथ लिया। सेठजी के अनरोध पर शास्त्रीजी ने उन्हें तथा उपस्थित सज्जनों को धवल-सिद्धान्त का मंगलाचरण पढ़कर सनाया। सब हर्ष-विभोर हो गये। सेठजी अन्तःप्रेरित हुए, मन-हीमन निश्चय किया, इन ग्रन्थों को बाहर लाने का अवश्य ही प्रयास करना है। ग्रन्थों की प्रतिलिपि करने के सम्बन्ध में पं० ब्रह्मसूरि शास्त्री से भी बातचीत की। वहां से लौटकर वे बम्बई आये। सेठ माणिकचन्द जे० पी० से सिद्धान्त-ग्रथों की प्रतिलिपि करवाने के सम्बन्ध में चर्चा की और वैसा करने का विचार स्थिर कर लिया, पर वे दोनों ही अति व्यस्त व्यवसायी ठहरे, कार्यारम्भ नहीं हो सका। समय जाते क्या देर लगती है, दश वर्ष और व्यतीत हो गये।
সনালাণ অবশ্য গী। অসন মী
उपर्युक्त विचार-विमर्श का प्रसंग चल ही रहा था, उस बीच दिगम्बर समाज के सुप्रसिद्ध विद्वान् पं० गोपालदास बरैया को साथ लेकर अजमेर के सेठ मूलचन्द सोनी मूडबिद्री की तीर्थ-यात्रा पर गये । सिद्धांत-ग्रन्थों की प्रतिलिपि का प्रसंग चला । उन्होंने मूडबिद्री के भट्टारक तथा पंचों से स्वीकृति ली। पं० ब्रह्मसूरि शास्त्री से प्रतिलिपि कराने का निश्चय किया। कार्यारम्भ हो गया। पं० ब्रह्मसूरि शास्त्री लगभग तीनसौ श्लोक-प्रमाण सामग्री की ही प्रतिलिपि कर पाये थे कि कार्य स्थगित कर देना पड़ा । सेठ मूलचन्द सोनी
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