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१६ ] आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड : २ - पश्चिम में भाषा-तत्व पर हुए अध्ययन-अनुशीलन का यह संक्षिप्त विवरण है। इसमें कोई सन्देह नहीं, भाषा-वैज्ञानिकों की अगली पीढ़ी के लिए यह किसी-न-किसी रूप में प्रेरक सिद्ध हुआ। निष्कर्ष
प्राच्य और प्रतीच्य दोनों भू-भागों में भाषा-तत्त्व पर की गयी गवेषणा और विवेचना की पृष्ठ-भूमि प्राप्त थी ही, जिस पर आगे चल कर भाषा-विज्ञान के क्षेत्र में भाषा के विविध पक्षों को लेते हुए सूक्ष्म तथा गहन अध्ययन-कार्य हुआ और हो रहा है। भाषा-विज्ञान इस समय मानविको अध्ययन के क्षेत्र में एक अत्यन्त महत्वपूर्ण स्वतन्त्र विषय के रूप में प्रतिष्ठित है। इस पर काफी गवेषणा और अनुसन्धान हुआ है, पर, यह विषय बहुत विस्तीर्ण है, जिसकी व्याप्ति सारे विश्व तक है। विश्व की विभिन्न प्राचीन और अर्वाचीन भाषाओं का ज्यों-ज्यों और अधिक तलस्पर्शितापूर्वक वैज्ञानिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से अध्ययन-क्रम आगे बढ़ता जायेगा, भाषा-विज्ञान के क्षेत्र में तो बड़ा काम होगा ही, विश्व के विभिन्न भागों में समय-समय पर प्रादुभूत सांस्कृतिक चेतना, सामाजिक विकास, राजनैतिक व प्रशासनिक परिवर्तन, उतार-चढ़ाव आदि से जुड़े हुए अनेक अध्यक्त तथ्य भी प्रकट होंगे।
भाषा-विज्ञान की आधुनिक परम्परा
पाश्चात्य विद्वाम ___ भाषा-विज्ञान शब्द आज जिस अर्थ में प्रचलित है, उस दृष्टि से भाषा के साथ संश्लिष्ट अनेक सूक्ष्म पक्षों का व्यापक और व्यवस्थित अध्ययन लगभग पिछली दो शताब्दियों से हो रहा है। अध्ययन की इस सूक्ष्म विश्लेषणपूर्ण व समीक्षात्मक परम्परा को आरम्भ करने का मुख्य श्रेय यूरोपीय विद्वानों को है, जिन्होंने पाश्चात्य भाषाओं के साथ-साथ प्राच्य भाषाओं का भी उक्त दृष्टिकोण से गहन अध्ययन किया। विशेषत: भारोपीय-भाषाओं के अध्ययन में तो इन विद्वानों ने जो कार्य किया, वह अत्यन्त प्रेरक और उद्बोधक है। . . पाश्चात्य विद्वानों में निःसन्देह अनुसन्धित्सा की विशेष वृत्ति रही है। पाश्चात्य मनीषी सर विलियम जाँन्स इसके मूर्त उदाहरण कहे जा सकते हैं। वे (१८ वीं शती) कलकत्ता में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश थे। भारतीय विधि-विधान, न्याय तथा प्रशासन आदि को सूक्ष्मता से जानने की उन्हें जिज्ञासा हुई, ताकि वे भारतीयों को उनकी अपनी परम्पराओं के अनुरूप सही न्याय दे सकें। इसके लिए संस्कृत का अध्ययन परम आवश्यक था। सर विलियम जॉन्स के मन में संस्कृत पढ़ने की उत्कट इच्छा जाएत हुई। उन्होंने संस्कृत के किसी अच्छे विद्वान् की खोज प्रारम्भ की, जो उन्हें पढ़ा सकें।
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