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________________ भाषा और साहित्य ] विश्व भाषा-प्रवाह [ १५ के अध्ययन का एक विशेष क्रम चला । उस बीच विद्वानों को ग्रीक,लेटिन और हिब्रू भाषाओं के तुलनात्मक तथा समीक्षात्मक अध्ययन का विशेष अवसर प्राप्त हुआ। ___ ओल्ड टेस्टामेंट की भाषा होने के कारण उस समय हिब्र को वहां सबसे प्राचीन तथा सब भाषाओं की जननी माना जाता था। फलतः विद्वानों ने यूरोप की अन्य भाषाओं के वैसे शब्दों का अन्वेषण आरम्भ किया, जो हिब्र के तदर्थक शब्दों के सदृश या मिलतेजुलते थे। ऐसे कोश बनने लगे, जिनमें इस प्रकार के शब्दों का संकलन था। उन सभी शब्दों की व्युत्पत्ति हिब्र से साध्य है, ऐसा प्रमाणित करने का भी प्रयास चलने लगा। इस सन्दर्भ में तत्कालीन विद्वानों का अरबी तथा सीरियन आदि भाषाओं के परिशीलन की ओर भी ध्यान गया। पन्द्रहवीं शती गूरोप में विद्याओं और कलाओं के उत्थान या पुनरुज्जीवन का समय माना जाता है । साहित्य, संस्कृति आदि के विकास के लिए जन-मानस जागृत हो उठा था तथा अनेक आन्दोलन या सबल प्रयत्न पूरे वेग के साथ चलने लगे थे। भिन्न-भिन्न देशवासियों का अपनी-अपनी भाषाओं के अभ्युदय की ओर भी चिन्तन केन्द्रित हुआ । परिणामस्वरूप भाषाओं के तुलनात्मक अध्ययन का जितना जैसा संभव था, उपक्रम चला । भाषाअध्येताओं ने इस सन्दर्भ में जो उपलब्धियां प्राप्त की, उनमें से कुछ थीं : * विद्वानों को ऐसा आभास हुआ कि ग्रीक और लैटिन भाषाए सम्भवतः किसी एक ही स्रोत से प्रस्फुटित हुई हैं। * भाषाओं के पारिवारिक वर्गीकरण की दृष्टि से यह, चाहे अति साधारण ही सही, एक प्रेरक संकेत था। * विद्वानों को चाहे हल्की ही सही, ऐसी भी प्रतीति हुई कि हो सकता है, शब्दों का आधार धातुएं हों। * भाषाओं के अध्ययन की ओर उस समय यूरोप में कितनी उन्मुखता हो चली थी, यह इसी से स्पष्ट है कि सुप्रसिद्ध दार्शनिक लिबनिज ने भी इस ओर ध्यान दिया । शासक वर्ग भी इससे प्रभावित हुआ। फलत: पीटर महान् ने तुलनात्मक शब्दों का संग्रह करवाया। रूस की महारानी कथरिन द्वितीय ने भी पी० एस० पल्लस (१७४१-१८११) को एक तुलनास्मक शब्दावली तयार करने की आज्ञा दी। फलतः उन्होंने यूरोप और एशिया; दोनों महाद्वीपों की अनेक भाषाओं के २८५ तुलनात्मक शब्द संकलित किये। इसके दूसरे संस्करण में कुछ और विकास हुआ। लगभग अस्सी भाषाओं के सादृश्य मूलक शब्दों का उसमें और समावेश किया गया। ... Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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