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________________ । ६०१ भाषा और साहित्य ] शौरसेनी प्राकृत और उसका वाङ्मय 'স-পথথান ঐ অনুশাহ বাবসথা अंग-पग्णत्ति में अंग-ग्रन्थों की पद - संख्याओं के साथ-साथ श्लोक-संख्याएं एवं प्रक्षर-संख्याए भी निर्दिष्ट की गई हैं, जिनका विज्ञ तथा अनुसन्धित्सु पाठकों की जानकारी के लिए यहां उल्लेख किया जा रहा है : १, आचार : पद-संख्या १८००० श्लोक-संख्या ९१९५९२३११८७००० अक्षर संख्या २९९२६९५४१९८४००० पद-पंख्या ३६००० २. सूत्रकृत : श्लोक-संख्या १८३९१८४६३७४००० अक्षर-संख्या ५८८५३९०८३९६८००० ३. स्थान : पद-संख्या ४२००० श्लोक-संख्या २१४५७१५४१०३००० अक्षर-संख्या ६८६६२८९३१२९६००० पद-संख्या १६४००० ४. समवाय: श्लोक-संख्या ८३७८५०७७९२६००० अक्षर-संख्या २६८११२२४९३६३२००० व्याख्या-प्रज्ञप्ति : पद-संख्या २२८००० श्लोक-संख्या ११६४८१६९३७०२००० अक्षर-संख्या ३७२७४१४१९८४६४००० ६. ज्ञातृधर्मकथा : पद-संख्या ५५६००० श्लोक-संख्या २८४०५१८४९५५४००० अक्षर-संख्या ९८९६५९१८५७२८००० ७. उपासकाध्ययन : पद-संख्या ११७०००० श्लोक-संख्या ५९७७३५००७१५५००० अक्षर-संख्या १९१२७५२०२२८९६०००० १. इसके लेखक आचार्य शुभचन्द्र हैं, जो प्रकाण्ड विद्वान थे । दिगम्बर-परम्परा में उनकी विविध-विद्या (व्याकरण, न्याय एवं परमागम)-धर तथा षट्-भाषा-कवि-चक्रवर्ती के । नाम से ख्याति है । अंग-पण्णत्ति में द्वादश अंगों तथा चतुर्दश पूर्वो का वर्णन है। ____Jain Education International 2010_05. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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