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५९६ ] भागम और fafeक : एक अनुशीलन [ । ऋषभदेव आदि तेबीस तीर्थंकरों के तीर्थ में दूसरे दश-दश अनगार दारुण उपसर्गों को जीतकर सम्पूर्ण कर्मों के क्षय से अन्तकृत् केवली हुए। इन सबकी दशा का जिनमें वर्णन किया जाता है, उसे अन्तकृद्दशा नामक अंग कहते हैं।"
अनुत्तरोपपाविकदशा नामक अंग बानवे लाख चवालीस हजार पदों द्वारा एक-एक तीर्य में नाना प्रकार के दारुण उपसर्गों को सहकर और प्रातिहार्य अर्थात् अतिशय-विशेष प्राप्त कर अनुत्तर-विमानों में गये हुए दश-दश अनुत्तरौपपादिकों का वर्णन करता है । तत्वार्थ-भाष्य में भी कहा है : "उपपाद-जन्म ही जिनका प्रयोजन है, उन्हें प्रौपपादिक कहते हैं । विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थ सिद्धि—ये पांच अनुत्तर-विमान हैं, जो अनुत्तरों में उपपाद-जन्म में उत्पन्न होते हैं, उन्हें अनुत्तरोपपादिक कहते हैं । ऋषिदास, धन्य, सुनक्षत्र, कार्तिकेय, आनन्द, नन्दन, शालिभद्र, अभय, बारिषेण और चिलातपुत्र-ये दश अनुतरीदपादिक वर्द्धमान तीर्थकर के तीर्थ में हुए हैं। इसी तरह ऋषभदेव आदि तेबीस तीर्थंकरों के तीर्थ में अन्य दश-दश महान् साधु दारुण उपसर्गों को जीतकर विजयादिक पांच अनुत्तरों में उत्पन्न हुए। इस तरह अनुत्तरों में उत्पन्न होने वाले दश साधुओं का जिसमें वर्णन किया जाय, उसे अनुत्तरोपपाविकदशा नामक अंग कहा जाता है।
प्रश्न-ज्याकरण नामक अंग तिरानवे लाख सोलह हजार पदों द्वारा आक्षेपणी, विक्षेपणी, संवेदनी और निवेदनी-इन चतुर्विध कथाओं तथा (भूत, भविष्य व वर्तमान काल संबंधी धन, धान्य, लाभ, अलाभ, जीवित, मरण, जय एवं पराजय सम्बन्धी प्रश्नों के पूछने पर, उनके) उपाय का वर्णन करता है।
जो नाना प्रकार की एकान्त दृष्टियों के तथा दूसरे समयों की निराकरण पूर्वक शुद्धि कर छः द्रव्यों तथा नव पदार्थों का प्ररूपण करती है, वह आक्षेपणी कथा कही जाती है। जिसमें पहले पर-समय के द्वारा स्व-समय में दोष बतलाये जाते हैं, तदनन्तर पर समय की आधारभूत अनेक एकान्त दृष्टियों का शोधन कर स्व-समय की स्थापना की जाती है तथा छः द्रव्यों व नव पदार्थों का प्ररूपण किया जाता है, उसे विक्षेपणी कथा कहते हैं । पुण्य के फल का वर्णन करने वाली कथा को संवेदनी कथा कहा जाता है।
शंका-पुण्य के फल कौन से हैं ?
समाधान-तीर्थंकर, गणधर, ऋषि, चक्रवती, बलदेव, वासुदेव, देव और विद्याधरों की खियां पुण्य के फल हैं ।
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