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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन । ऐसा माना जाता है कि यह घटना वीर-निर्वाण सं० २१००० के आस-पास घटित होगी। ऐसा भी कहा जाता है कि जिस दिन पंचप आरे की समाप्ति होगी, उसके पहले प्रहर में आचार्य दुःप्रसह दिवंगत हो जायेंगे । उनके दिवंगमन के साथ ही आचारांग भी पूर्णतः विच्छिन्न हो जायेगा।
यों आगम-विच्छेद की अन्तिम कड़ी तक पहुंच पइण्णाकार उसका फलित स्पष्ट करते हुए लिखते हैं : “वास्तव में आचारांग ही वह साधन है, जो श्रमणों को चारित्र-धर्म का यथावत् बोध कराता है।
आशारोग का प्रणाश हो जाने पर सब प्रोर अनाचार व्याप्त हो जायेगा। सर्वत्र अज्ञान-तमिस्रा का साम्राज्य फैल जायेगा । तब श्रमणों का अस्तित्व भी नहीं रह पायेगा।"1
तिस्थोगालीपइन्ना में विच्छेद-क्रम के बीच बचे रहने वाले प्रागम-वाड़ मय के सम्बन्ध में इतना और लिखा है : “वीर-निर्वाण के पश्चात् २१००० वर्ष तक यहां भारतवर्ष में वशवकालिक अर्थ रूप में विद्यमान रहेगा । दुःप्रसह मुनि के स्वर्गारोहण के साथ वह विनष्ट होगा।
इसी प्रकार वीर-निर्वाण से २१००० वर्ष तक, जब तक तीर्थ-जैन परम्परा विद्यमान रहेगी, आवश्यक सूत्र भी अव्युच्छिन्न रहेगा।"
१. अशओमच्छिण्णायारो, अह समणगणस्स बाबियायारो।
आयारम्मि पण?, होहीति तइया अणायारो॥ चंकमिरं वरतरं तिमिस गुहाए तमंधकाराए। म य तइया समणाणं, आयार-सुते पणमि ॥
- -तित्थोगालोपइन्ला, गा० ८१९-२० २. वासाण सहस्सेण य, इकबीसाए इहं भरहवासे ।
बसवेयालिय अत्यो, दुप्पसहजइंमि वासिहिति ॥ ५० ॥ इगवीससहस्साई, वासाणं वीरमोक्खगमणाओ। भन्योच्छिन्नं होही, मावस्सगं जाव तित्य तु ॥५१॥
-तित्वोगालीपइन्ना
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