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________________ ५९.] आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन । ऐसा माना जाता है कि यह घटना वीर-निर्वाण सं० २१००० के आस-पास घटित होगी। ऐसा भी कहा जाता है कि जिस दिन पंचप आरे की समाप्ति होगी, उसके पहले प्रहर में आचार्य दुःप्रसह दिवंगत हो जायेंगे । उनके दिवंगमन के साथ ही आचारांग भी पूर्णतः विच्छिन्न हो जायेगा। यों आगम-विच्छेद की अन्तिम कड़ी तक पहुंच पइण्णाकार उसका फलित स्पष्ट करते हुए लिखते हैं : “वास्तव में आचारांग ही वह साधन है, जो श्रमणों को चारित्र-धर्म का यथावत् बोध कराता है। आशारोग का प्रणाश हो जाने पर सब प्रोर अनाचार व्याप्त हो जायेगा। सर्वत्र अज्ञान-तमिस्रा का साम्राज्य फैल जायेगा । तब श्रमणों का अस्तित्व भी नहीं रह पायेगा।"1 तिस्थोगालीपइन्ना में विच्छेद-क्रम के बीच बचे रहने वाले प्रागम-वाड़ मय के सम्बन्ध में इतना और लिखा है : “वीर-निर्वाण के पश्चात् २१००० वर्ष तक यहां भारतवर्ष में वशवकालिक अर्थ रूप में विद्यमान रहेगा । दुःप्रसह मुनि के स्वर्गारोहण के साथ वह विनष्ट होगा। इसी प्रकार वीर-निर्वाण से २१००० वर्ष तक, जब तक तीर्थ-जैन परम्परा विद्यमान रहेगी, आवश्यक सूत्र भी अव्युच्छिन्न रहेगा।" १. अशओमच्छिण्णायारो, अह समणगणस्स बाबियायारो। आयारम्मि पण?, होहीति तइया अणायारो॥ चंकमिरं वरतरं तिमिस गुहाए तमंधकाराए। म य तइया समणाणं, आयार-सुते पणमि ॥ - -तित्थोगालोपइन्ला, गा० ८१९-२० २. वासाण सहस्सेण य, इकबीसाए इहं भरहवासे । बसवेयालिय अत्यो, दुप्पसहजइंमि वासिहिति ॥ ५० ॥ इगवीससहस्साई, वासाणं वीरमोक्खगमणाओ। भन्योच्छिन्नं होही, मावस्सगं जाव तित्य तु ॥५१॥ -तित्वोगालीपइन्ना Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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