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आगम और fafter : एक अनुशीलन
प्रसंगोपात्ततया शाकटायन ने श्वेताम्बर- कालिक सूत्रों के अनध्याय के सन्दर्भ में चन्द्रग्रहरण, सूर्य ग्रहण, निर्घात, भूकम्प, गर्जन, विद्य ुत्, अल्कादाह, मशानाभ्यास, अशुचि, उत्सव तथा सन्ध्या- - ये दश अध्याय-काल' कहे हैं । यह श्वेताम्बर - परम्परा के अनुरूप हैं । शाकटायन के यापनीय-दर्शन- सम्मत विचार एवं आस्था का परिचय पाने की दृष्टि से उपर्युक्त विवररण काफी महत्वपूर्ण है ।
शाकटायन रश्चित स्त्री-नि-केवलि-मुक्ति-प्रकरशा
दिगम्बरों तथा श्वेताम्बरों के बीच स्थित अनेक विवादास्प्रद विषयों में स्त्री - निर्वारण तथा केवली - कवलाहार — ये दो बहुत महत्वपूर्ण विषय हैं । जैसा कि उल्लेख हुआ है, श्वेताम्बरों में ये दोनों बातें हैं, दिगम्बर इन्हें स्वीकार नहीं करते। इस सम्बन्ध में यापनीय आचार्यों का मन्तव्य श्वेताम्बरों के साथ है ।
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श्रागम - साहित्य में तो ये विषय यथा - प्रसंग चर्चित हुए ही हैं, पर शाकटायन पहले आचार्य हैं, जिन्होंने दार्शनिक शैली में संस्कृत में इनका विवेचन किया । शाकटायन के उस महत्वपूर्ण ग्रन्थ का नाम 'स्त्री- निर्वाण केवलि भुक्ति - प्रकरण ' " है । लेखक की इस पर स्वोपज्ञ - वृत्ति भी है । इन विषयों का शाकटायन ने अपनी प्रकृष्ट प्रज्ञा द्वारा अपनी सबल एवं मार्मिक लेखनी से जैसा विवेचन किया है, वह असाधारण है ।
भूमिकम्पनम् । तृतीयं गर्जितं विद्य दुल्कावाहो विशां तथा ॥ श्मशानाभ्यासमशुचिरुत्सवो दश सन्ध्यया । इति कालिकसृस्थानध्यायदेशकालाः पठिताः ॥
हमारे कथन का यह अभिप्राय नहीं है कि शाकटायन से पूर्व के ग्रन्थकारों ने इन विषयों की कोई चर्चा ही नहीं की हो । शाकटायन से पूर्व यापनीय मनीषियों ने भी इस पर लिखा है । आचार्य हरिभद्र सूरि-रचित ललितविस्तरा
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में स्त्री - निर्वाण के सन्दर्भ में
१. चन्द्रसूर्योपरागश्च निर्धातो
खण्ड :
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( ३.२.७४ के सन्दर्भ में)
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२. यह ग्रन्थ वि० सं० २०३० में मुनि जम्बूविजयजी के सम्पादकत्व में आत्मानन्द जैन सभा, भावनगर (गुजरात) से प्रकाशित हुआ है ।
३. आचार्य हरिभद्र-रचित, चैत्य-वम्बन-सूत्र-वृत्ति का नाम ललितविस्तरा है ।
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