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मागम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : २
पारिवेशिक दृष्टि से निर्वस्त्रता का स्वीकार तथा सैद्धान्तिक दृष्टि से श्वेताम्बर-सम्मत सवस्त्रता के समर्थन का यह विचित्र समन्वय क्या यह मानने के लिए पर्याप्त नहीं है कि शिवार्य एवं अपराजित यापनीय संघ से सम्बद्ध थे ?
शिवार्य की आराधना में कुछ ऐसी बातें भी हैं, जिनका समर्थन न दिगम्बर-शास्त्रों द्वारा होता है और न श्वेतास्बर- आगमों द्वारा ही। इससे भी यह प्रकट होता है कि वे इन दोनों ही परम्पराओं से सम्बद्ध नहीं थे। किसी तीसरी ही परम्परा से उनका सम्बन्ध प्रा। वह यापनीय के अतिरिक्त और कौन-सी हो सकती है ?
যাথন : থানীথানাশাপথ ___शाकटायन जैन जगत के महान् वैयाकरण, दार्शनिक एवं आगमवेत्ता थे। उनका दूसरा नाम पाल्यकीर्ति था। वे राष्ट्रकूटवंशीय नरेश अमोघवर्ष के समसामयिक थे। उनके स्वयं के इस प्रकार के उल्लेख हैं, जिनसे यह पुष्ट होता है। जैसे, व्याकरण के 'ख्याते हश्ये' सूत्र को स्वोपज्ञ-वृति में वे उदाहरण देते हुए लिखते हैं : "अरुणा देवः पाण्डयम् । अवहबमोघवर्षाऽरातीन् ।"
सुप्रसिद्ध विद्वान् स्वर्गीय डा० महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य ने न्यायकुमुदचन्द्र द्वितीय भाग की भूमिका में शाकटायन के समय के सम्बन्ध में चर्चा की है। अमोघवर्ष का समय ई० सन् ८१४-८७७ माना जाता है। तदनुसार उन्होंने शाकटायन का समय ई० सन् ८००-८७५ के मध्य सम्भावित माना है।।
शाकटायन यापनीय संघ के महान् आचार्य थे, इस प्रकार के उल्लेख प्राप्त होते हैं । विक्रम की बारहवीं-तेरहवीं शताब्दी के महान् टीकाकार आचार्य मलयगिरि ने नन्वी सूत्र की टीका में शाकटायन को 'यापनीययतिमामाप्रणी' कहा है । যাদ্ধাধৰ শপথা বরংপলখ ক্ষী কর
जैन वैयाकरणों में शाकटायन का अपना महत्वपूर्ण स्थान है। आचार्य हेमचन्द्र द्वारा
१. शाकटायन व्याकरण, ४.३.२०८ २. अमोघवर्ष के शत्रुओं को दग्ध कर डाला। ३. शाकटायनोऽपि यापनीययतिमामाग्रणी स्वोपशशब्दानुशासनवृत्तावारी भगवता स्तुतिमेवाह--'श्रीवीरममृतं ज्योतिनत्वादि सर्ववेवसाम्।
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