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भाषा और साहित्य शौरसेनी प्राकृत और उसका बाङमय । ५६६ বহন #
देवसेन द्वारा यापनीय संघ के उद्भव के सम्बन्ध में किये गये उल्लेख के अनुसार विक्रम को हुए २०५ वर्ष व्यतीत होने पर कल्याण नामक नगर में श्रीकलश नामक श्वेताम्बर साधु से यापनीय संघ प्रवर्तित हुआ।
देवसेन का यह भाव स्पष्ट है कि यह श्वेताम्बर-प्रसूत मत है । अर्थात् इसके श्रमण निर्वस्त्र हैं, पर उनमें श्वेताम्बर-दर्शन की पुट है । देवसेन ने, जैसा कि पहले उल्लेख हुमा हैं, श्वेताम्बर-मत के उद्भव का समय १३६ विक्रमाब्द बताया है। उससे ६९ वर्ष बाद की यह घटना है । हो सकता है, वैचारिक पृष्ठ-भूभि के तैयार एवं परिपक्व होने में इतना समय व्यतीत हो गया हो । तदनन्तर उन विचारों का प्रतिफलन इस प्रकार के एक भिन्न सम्प्रदाय के रूप में हुआ हो।
वर्शनसार की एक अन्य प्रति में ऊपर चर्चित श्लोक के द्वितीय चरण के 'दुणि सए पंच उत्तरे जावे' के स्थान पर 'सत्त सए पंच उत्तरे जादे' है, जिसके अनुसार यापनीय संघ का उद्भव वि० सं० २०५ के स्थान पर वि० सं० ७०५ में होता है। पर, यह संगत प्रतीत नहीं होता; क्योंकि उससे काफी पहले शाकटायन प्रभृति यापनीय संघ के अति विश्रुत आचार्य हो चुके हैं । अतः 'दुण्णि सए पंच उत्तरे जादे'—यही पाठ वास्तविक प्रतीत होता है। লেনী ঐ অনুৰ আণনীথ সন ____ रत्ननन्दी ने भद्रबाहु-चरित्र में श्वेताम्बर मत की उत्पत्ति का वर्णन समाप्त करते हुए वहीं से यापनीय संघ की उत्पत्ति का वृत्तान्त शुरू किया है। यापनीय संघ की उत्पत्ति के सम्बन्ध में जो कथानक वे कहना चाहते हैं, उसे श्वेताम्बर-मत सम्बन्धी कथानक से जोड़ते हुए वे आगे बढ़ते हैं। वे लिखते हैं : "राजा लोकपाल और रानी चन्द्रलेखा श्वेताम्बरमत के भक्त थे। उनके एक पुत्री हुई, जो सुन्दर लक्षणों से युक्त थी। उसका नाम नकुला देवी रखा गया।" उसने अपने गुरु से अनेक शास्त्रों का अध्ययन किया। वह यथाकाल
१. कल्लाणे वरणयरे, दुणिसए पंच उत्तरे जावे।
जावणियसंघमावो, सिरिकलसावो हु सेवड़वो ॥
-दर्शनसार, २९
२. तभक्तलोकपालाख्य-महीक्षिच्चन्द्रलेखयोः ।
सुता नृकुलदेव्याच्या बभूव वर लक्षणा ॥
-भद्रबाहुवरित परिच्छेद, ४.१३५
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