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________________ ५० उसने चन्द्रलेखा को पटरानी बनाया । "2 "लोकपाल अपना नाम सार्थक करता हुआ अपने विशाल राज्य का पालन करने लगा । वह इतना प्रतापी था कि सब राजा उसके समक्ष नत थे । एक दिन महारानी ने, जब महाराज प्रसन्न थे, निवेदन किया - नाथ ! कान्यकुब्ज नामक नगर में हमारे गुरु रहते हैं । जगत्पूज्य । आप अनुरोधपूर्वक उन्हें यहां आमंत्रित करें । राजा ने अपनी प्रियतमा का आग्रह मान लिया । "" 3 आगम और ब्रिपिटक । एक अनुशीलन "राजा ने उन साधुओं को लाने के लिए अपने व्यक्तियों को वहां रवाना किया । वे वहां गये । वहां स्थित अर्द्ध फालक मत के साधुओं की भक्तिपूर्वक बार-बार अभ्यर्थना की। तब जिनचन्द्र प्रभृति साधु वलभी नगर में आये । राजा ने साधु-संघ का आगमन सुना । राजा सामन्तवृन्द, मंत्रीगण तथा नागरिक जनों से परिवृत्त हो, विविध वाद्यों की मधुर ध्वनि से दिशाओं को परिव्याप्त करता हुआ यथाशीघ्र साधुओं को वन्दन करने गया ।' 113 १. प्रजापालः स्वपुत्रार्थं चन्द्रकीतिनृपात्मजाम् । प्रमोदात् प्रार्थयामास चन्द्रलेखां गुणोज्ज्वलाम् ॥ उपयभ्य कुमारोऽसौ तां कन्यां नवयौवनाम् । बोभुजीति तया भोगान् शच्येव सुरनायकः ॥ क्रमात् संप्राप्य पुण्येन प्राज्यं राज्यं पितुर्मुदा । चकार चन्द्रलेखां तां सदग्रमहिवीपदे ॥ Jain Education International 2010_05 - भद्रबाहुचरित्र, परिच्छेद ४, श्लो० ३९-४१ २. लोकपालो नृपः सार्थं कुर्वन्नामात्मनो भृशम् । विधत्त विशदं राज्यं नताशेषमहीपतिः ॥ एकवाऽऽनन्दचित्तोऽसौ राज्ञ्या विज्ञापितो नृपः । नाथाऽस्मद्गुरवः सन्ति कान्यकुब्जाख्यपत्तने ॥ तानानायय वेगेन जगत्पूज्यानू मदाग्रहात् । प्रियाप्रियतया भूपस्तद्वचो मानयनु मुदा ॥ वही, श्लोक ४२-४४ ३. तौल्ला प्रषयामास तत्रैवात्मीयसज्जनान् । पत्वा नत्वा भृशं भक्त्या गुरु स्ते तत्र संस्थितान् ॥ खंड १२ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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