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मागम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन . [खण्ड : २ यह विशाल वाङमय उत्तरवर्ती साहित्य के सर्जन में निःसन्देह बड़ा उपजीवक एवं प्रेरक रहा । फलतः जैन-वाङमय का स्रोत प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश तथा अन्यान्य लोकभाषाओं का माध्यम लिये उत्तरोत्तर पल्लवित, पुष्पित एवं विकसित होता गया। इतना ही नहीं, जैनेतर साहित्य की भी अनेक विधाएं इससे प्रभावित तथा अनुप्राणित हुईं, जो स्वतन्त्र अध्ययन का विषय है।
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