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५०४ 1 . भागम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
र के रचे जाने का क्रम चालू था। दशवकालिक चूणि के लेखक स्थविर अगस्त्यसिंह, जिनका समय विक्रम के तृतीय घातक के आस-पास था, अपनी रचना में कई स्थानों पर प्राचीन दीकानों के सम्बन्ध में इंगित करते हैं ।
हिमवत् थेरावली में उल्लेख
हिमवत् थेरावली में किये गये उल्लेख के अनुसार आर्य मधुमित्र के अम्घासी तथा तत्वार्थ महाभाष्य के रचयिता आर्य गन्धहस्ती ने आर्य स्कन्दिल के अनुरोध पर द्वादशांग पर विवरण लिखा, जो आज अप्राप्य है । आगम-महोदधि मुनि पुण्य विजयजी के अमुमार आचारांग का विवरण सम्भवतः विक्रम के दो शतक बाद लिखा गया। विवरण वस्तुतः संस्कृत-टीका का ही एक रूप है । इस प्रकार टीकाओं की रचना का क्रम एक प्रकार से बहुत पहले ही चालू हो चुका था।
प्रमुख टीकाकार প্রাঘাথ বিশঃ খুব ___ जन जगत् के महान् विद्वान्, अध्यात्म-योगी प्राचार्य हरिभद्र सूरि का आगम-टीकाकारों में महत्वपूर्ण स्थान है। उनका समय आठवीं ई० शती माना जाता है । उन्होंने आवश्यक, दशवैका लक, नन्दी, अनुयोग-द्वार तथा प्रज्ञापना पर टीकाओं की रचना की । टीकाओं में उनकी विद्वत्ता तथा गहन अध्ययन का स्पष्ट दर्शन होता है । टीकात्रों में कथा-भाग को उन्होंने प्राकृत में ही यथावत् उपस्थित किया। इस परम्परा का कतिपय उत्तरवर्ती टीकाकारों ने भी मनुसरण किया, जिनमें वादिवैताल शान्ति सूरि, नेमिचन्द्र सूरि तथा प्राचार्य मलय गिरि आदि मुख्य हैं। शीला कार्य
शीलांकाचार्य ने द्वादशांग वाङमय के अत्यन्त महत्वपूर्ण ग्रन्थ आचारांग तथा सूत्रकृतांग पर टीकाओं की रचना की। इनमें जैन-तत्व-ज्ञान तथा प्राचार-क्रम से सम्बद्ध अनेक महत्वपूर्ण तथ्य उद्घाटित हुए हैं। शीलांकाचार्य का समय लगभग नवम ईसवी शती माना जाता है। शान्त्याचार्य एवं नेमिचन्द्राचार्य
ईसा की ग्यारहवीं शती में वादिवताल प्राचार्य शान्ति सूरि तथा प्राचार्य नेमिचन्द्र
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