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भागम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन पिण्ड ___ चूणियों के रूप में जैन साहित्य को ही नहीं, प्रत्युत भारतीय वाङमय को अनुपम देन देने वाले मनीषी श्री जिनदास गणी महत्तर थे। वे वाणिज्य-कुलोप्पन्न थे। धर्म-सम्प्रदाय की दृष्टि से वे कोटिक गण के अन्तर्गत वज्र-शाखा से सम्बद्ध थे। इतिहासज्ञों के अनुसार उनका समय षष्ठ शती ईसवी के लगभग माना जाता है ।
जैसलमेर के भण्डार में दशवकालिक चूणि की एक प्राचीन प्रति मिली है, जिसके रचयिता स्थविर अगस्त्यसिंह हैं । उनका समय विक्रम कौं तृतीय शती माना जाता है, जिससे प्रकट होता है कि देवद्धिगणी क्षमाश्रमण के नेतृत्व में समायोजित वालभी वाचना से लगभग दो-तीन शती पूर्व ही रची जा चुकी थी। आगम-महोदधि स्वर्गीय मुनि पुण्यविजयजी द्वारा उसका प्रकाशन किया गया है। श्री जिनदास गणी महत्तर द्वारा रचित दश वैकालिक चूणि के नाम से जो कृति विश्रु त है, उसे प्राचार्य हरिभद्र सूरि ने वृद्ध-विवरण के नाम से पभिहित किया है।
সংবণুথা দুর্থাথা
भारतीय लोक-जीवन के अध्ययन की दृष्टि से सभी चूणियों में यत्र-तत्र बहुत सामग्री विकीर्ण है, पर. निशीथ की विशेष चूणि तथा आवश्यक चूणि का उनमें अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। इनमें जैन इतिहास, पुरातत्व. तत्कालीन समाज आदि पर प्रकाश डालने वाली विशाल सामग्री भरी पड़ी है। लोगों का खान-पान. वेश-भूषा, प्राभूषण, सामाजिक, धार्मिक एवं लौकिक रीतियां, प्रथाएं, समाज द्वारा स्वीकृत नैतिक मान-दण्ड, समय-समय पर पर्व दिनों के उपलक्ष्य में आयोजित होने वाले मेले, समारोह, जनता द्वारा मनाये जाने वाले त्यौहार, व्यावसायिक स्थिति, व्यापार-मार्ग, एक समुदाय के साथ व्यापारार्थ दूर-दूर समुद्र पार तक जाने वाले बड़े-बड़े व्यवसायी (सार्थवाह), उपज, दुभिक्ष, दस्यु, तस्कर आदि अनेक ज्ञातव्य विषयों का विविध प्रसंगों के बीच इन चूणियों में विवेचन हुअा है।
स्पष्टतः पता चलता है कि जैन प्राचार्य तथा सन्त जन-जन को धर्म-प्रतिबोध देने के निमित्त कितने समुद्यत रहे हैं। यही कारण है कि उनका लोक-जीवन के साथ अत्यन्त निकटतापूर्ण सम्पर्क रहा है। तभी तो उस काल के लोक-जीवन का एक सजीव चित्र उपस्थित कर पाना उनके लिए सहजतया सम्भव हो सका। जन-सम्पर्क के साथ-साथ वे कितने व्यवहार-निपुण थे, प्रस्तुत सामग्री से यह भी प्रकट होता है। जैन सन्तों का अपने दर्शन तथा धर्म का गहन अध्ययन तो था ही, अध्ययन की अन्यान्य निष्ठात्रों में भी उनकी गहरी पहुंच थी। वास्तव में उनका अध्ययन बड़ा व्यापक तथा सार्वजनीय था ।
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