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-मागम और ब्रिपिटक : एक अनुशीलन
यह प्रकीर्णक पांच सौ छयासी गाथानों का कलेवर लिये हुए है। इसमें जीवों का गर्भ में आहार, स्वरूप, श्वासोछ वास का परिमारण, शरीर में सन्धियों की स्थिति व स्वरूप, माड़ियों का परिमाण, रोमकूप, पित्त, रुधिर, शुक्र आदि का विवेचन है । ये तो मुख्य विषय हैं ही, साथ-साथ गर्भ का समय, माता-पिता के अग, जीव की बाल, क्रीड़ा, मन्द मादि दश दशाए', धर्म में अध्यवसाय आदि और भी अनेक सम्बद्ध विषय वरिणत हैं।
নাহী া ন ইলা
प्रस्तुत प्रकीर्णक में प्रसंगोपात्त नारी का बहुत घृणोत्पादक व भयानक वर्णन किया गया है। कहा गया है कि नारी सहस्रों अपराधों का घर है। वह कपट-पूर्ण प्रेम रूपी पर्वत से निकलने वाली नदी है । वह दुश्चरित्र का अधिष्ठान है । साधुओं के लिए वह शत्रुरूपा है । व्याघ्री की तरह वह क्रू रहृदया है। जिस प्रकार काले नाग का विश्वास नहीं किया जा सकता, उसी प्रकार वह अविश्वस्य है । उच्छृखल घोड़े को जिस प्रकार दमित नहीं किया जा सकता, उसी प्रकार वह दुर्दम है।
कुद विचित व्यत्पत्तियां
नारी-निन्दा के प्रसंग में नारी-अर्थ-द्योतक शब्दों की कुछ विचित्र व्यत्पत्तियां दी गई हैं । जैसे, नारी के पर्यायवाची प्रमदा शब्द की व्युत्पत्ति करते हुए कहा गया है : पुरिसे भत्ते करंति ति पमयाओ अर्थात् पुरुषों को मत्त-कामोन्मत्त बना देती हैं, इसलिए वे प्रमदाए कही जाती हैं।
महिला शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार की गयी है : नाणा विहेहि कम्मे हि सिप्पइयाएहिं पुरिसे मोहंति त्ति महिलाओ। अनेक प्रकार के शिल्प आदि कर्मों द्वारा पुरुषों को मोहित करने के कारण वे महिलाए कही जाती हैं ।
प्राकृत में महिला के साथ महिलिया प्रयोग भी नारी के अर्थ में है। स्वार्थिक क जोड़कर यह शब्द निष्पन्न हुआ है । इसका विश्लेषण किया गया है : म्हंतं कलि जणयंति त्ति महिलियाओ, वे महान् कलह उत्पन्न करती हैं, इसलिए उन्हें महिलियाओ संज्ञा से अभिहित किया गया है।
रामा की व्युत्पत्ति करते हुए कहा गया है : पुरिसे हावभावभाइएहिं रमंति त्ति रामाओ। हाव, भाव प्रादि द्वारा पुरुषों को रम्य प्रतीत होने के कारण वे मा कही जाती हैं।
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