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आगमों की भाषा प्राकृत है। त्रिपिटकों की भाषा पालि है। दोनों भाषाओं में अद्भुत सांस्कृतिक ऐक्य है। दोनों भाषाओं का उद्गम-बिन्दु भी एक है। दोनों का विकास-क्रम भी बहुत कुछ समान रहा है। दोनों के विकसित स्वरूप में भी अद्भुत सामजस्य है। जो कुछ वैषम्य है, उसके भी नाना हेतु हैं। प्राकृत और पालि के सारे सम्बन्धों व विसम्बन्धों को सर्वागीण रूप से समझने के लिए भाषा मात्र की उत्पत्ति और प्रवाह-क्रम का समीक्षात्मक रूप में प्रस्तुतीकरण आवश्यक होगा।
भाषाओं के विकास और प्रसार की एक लम्बी कहानी है। भाषाओं का विकास मानव के बौद्धिक और भावात्मक विकास के साथ जुड़ा है। मानव ने संस्कृति, दर्शन और ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में महनीय अभियान चलाये। फलतः विश्व में विभिन्न संस्कृतियों, दार्शनिक परम्पराओं, साहित्यिक अभियोजनाओं तथा सामाजिक विकास का एक परिनिष्ठित रूप प्रतिष्ठापन्न हुआ। भाषाओं में इनसे सम्बन्धित आरोहों-अवरोहों का महत्वपूर्ण विवरण डूडा जा सकता है, क्योंकि मानव के जीवन में कर्म और अभिव्यक्ति का गहरा सम्बन्ध है। कर्म को तेजस्विता गोपित नहीं रहना चाहती। सूर्य की रश्मियों की तरह वह फूटना चाहती है। आकाश की तरह उसे अपना कलेवर फैलाने के लिए स्थान या माध्यम चाहिए। वह भाषा है; अतः भाषाओं के वैज्ञानिक अनुशीलन की बहुत बड़ी आवश्यकता है। विभिन्न भाषामों को आश्चर्यजनक निकटता
आश्चर्य होता है, सहस्रों मीलों की दूरी पर बोली जाने वाली फ्रेंच, अंग्रेजी आदि भाषाओं से भारत में बोली जाने वाली हिन्दी, बंगला, गुजराती, मराठी, पंजाबी तथा राजस्थानी आदि भाषाओं का गहरा सम्बन्ध है, जबकि बाह्य कलेवर में वे उनसे अत्यन्त भिन्न दृष्टिगोचर होती हैं। दूसरा आश्चर्य यह भी होगा कि भारत में ही बोली जाने वाली तमिल, तेलगु, कन्नड़ तथा मलयालम आदि भाषाओं से उत्तर भारतीय भाषाओं का मौलिक सम्बन्ध नहीं जुड़ता। .. भारत की प्राचीन भाषा संस्कृत, प्राकृत तथा पालि आदि का पश्चिम की ग्रीक, लैटिन, जर्मन आदि प्राचीन भाषाओं के साथ विशेष सम्बन्ध है। एक दूसरी से सहस्रों मीलों की दूरी पर प्रचलित तथा परस्पर सर्वथा अपरिचित-सी प्रतीत होने वाली विश्व की अनेक
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