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भाषा और साहित्य ] आर्ष (अदमागधी) प्राकृत और आगम वाङमय [४५९. धमणों के सन्दर्भ में प्रायश्चित्तों का विधान है। इस सूत्र में एक सौ तीन गाथाएं हैं । इसमें प्रायश्चित्त का महत्व, आत्म-शुद्धि या अन्तः-परिष्कार में उसकी उपादेयता आदि विषयों का प्रतिपादन किया गया है। प्रायश्चित्त के दश भेदों का वहां विवेचन है : १. प्रालीचना, २. प्रतिक्रमण, ३. मिश्र-आलोचना-प्रतिक्रमण, ४. विषेक, ५. व्युत्सर्ग, ६. तप, ७. छेद, ८. मूल, ९. अमवस्थाप्य, १०. पारंचिक । ऐसी मान्यता है कि प्राचार्य भद्रबाहु के अनन्तर अन्तिम दो अनवस्थाप्य और पारंचिक नामक प्रायश्चित्त व्युच्छन्न हो गये।
Pear: rear-साहित्य
सुप्रसिद्ध जैन लेखक, विशेषावश्यक-भाज्य जैसे महान् ग्रन्थ के प्रणेता जिनभद्रगणी भमाश्रमण (सप्तम वि. शती) इस सूत्र के रचयिता माने जाते हैं । क्षमाश्रमण इसके भाष्यकार भी कहे जाते हैं, पर, वह भाष्य वस्तुतः कोई स्वतन्त्र ग्रन्थ न हो कर बृहत्कल्प-भाव्य, व्यवहार-भाष्य, पंचकल्प-भाष्य, तथा पिण्ड-नियुक्ति प्रभृति ग्रन्थों की विषयानुरूप भिन्नभिन्न गाथाओं का संकलन मात्र है। आचार्य सिद्धसेन ने इस ग्रन्थ पर चूणि की रचना की। श्रीचन्द्र सूरि (१२२८ विक्रमाब्द में) उस (चूरिण) पर विषम-पद-व्याख्या नामक टीका की रचना की। श्रीतिलकाचार्यप्रणीत वृत्ति भी इस पर है। यति-जीतकल्प और भार-जीतकम्प नामक ग्रन्थ भी जोतकल्पसूत्र से ही सम्बद्ध या तद् विषयान्तर्गत माने जाते हैं । यति-जीतकल्प में यतियों या साघुओं के आचार का वर्णन है और श्राद्ध-जीतकल्प में श्राद्ध-श्रमणोपासक या श्रावक के प्राचार का विवेचन है। यति-जीतकल्प की रचना सोमप्रभसरि ने की। साधुरत्न ने उस पर वृत्ति लिखी। प्राद-जीतकल्प की रचना धर्मघोष द्वारा की गयी । उस पर सोमतिलक ने वृत्ति की रचना की।
मूल सूत्र उत्तराध्ययन, दशवकालिक, आवश्यक, पिण्ड-नियुक्ति तथा ओघ-नियुक्ति को सामान्यतः मूल सूत्रों के नाम से अभिहित किया जाता है । यह सर्वसम्मत तथ्य नहीं है। कुछ विद्वान् उत्तराध्ययन, दशर्वकालिक तथा आवश्यक; इन तीन को ही मूल सूत्रों में गिनते हैं । वे पिण्ड-नियुक्ति तथा ओघ-नियुक्ति को मूल सूत्रों में समाविष्ट नहीं करते । जैसा कि पहले इंगित किया गया है, पिण्ड-नियुक्ति दशवकालिक नियुक्ति का तथा ओघ-नियुक्ति आवश्यक-नियुक्ति का अंश है । कतिपय विद्वान् उक्त तीन मूल सूत्रों में पिण्ड-नियुक्ति को सम्मिलित कर उनकी संख्या चार मानते हैं । कुछ के अनुसार, जैसा कि प्रारम्भ में सूचित
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