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: एक अनुशीलन
आगम और fafter[ खण्ड : २ साधु साठ वर्ष की दीक्षिता साध्वी को श्राचार्य रूप में उपदेश दे सकता है । ये विधान विनयपिटिक के उस प्रसंग से तुलनीय हैं, जहां सौ वर्ष को उपसम्पदा प्राप्त भिक्षुणी को भी उसी दिन उपसम्पन्न भिक्षु के प्रति अभिवादन, प्रत्युत्थान, अंजलि प्ररणति श्रादि करने का विधान है । साधुत्रों एवं साध्वियों के आचार-व्यवहार सम्बन्धी तारतम्य और भेदरेखा की दृष्टि से ये प्रसंग विशेष रूप से मननीय एवं समीक्षणीय हैं।
नवम उद्दे शक में साधु की प्रतिमाओं तथा अभिग्रह का और दशम अध्ययन में यवमध्यचन्द्र प्रतिमा, वज्रमध्य-चन्द्र प्रतिमा आदि का वर्णन है ।
दशम अध्ययन में शास्त्राध्ययन की मर्यादा एवं नियमानुक्रम का विवेचन है, जो प्रत्येक साधु-साध्वी के लिए ज्ञातव्य है । उसके अनुसार निम्नांकित दीक्षा - पर्याय - सम्पन्न साधु निम्नांकित रूप में शास्त्राध्ययन का अधिकारी है :
दीक्ष-पर्याय
तीन वर्ष
चार वर्ष
पांच वर्ष
आठ वर्ष
दश वर्ष
ग्वारह वर्ष
बारह वर्ष
तेरह वर्ष
चौदह वर्ष
पन्द्रह वर्ष
सोलह वर्ष
सतरह वर्ष
अठारह वर्ष
उन्नीस पर्ष
बीस वर्ष
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