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________________ ४५२ ] : एक अनुशीलन आगम और fafter[ खण्ड : २ साधु साठ वर्ष की दीक्षिता साध्वी को श्राचार्य रूप में उपदेश दे सकता है । ये विधान विनयपिटिक के उस प्रसंग से तुलनीय हैं, जहां सौ वर्ष को उपसम्पदा प्राप्त भिक्षुणी को भी उसी दिन उपसम्पन्न भिक्षु के प्रति अभिवादन, प्रत्युत्थान, अंजलि प्ररणति श्रादि करने का विधान है । साधुत्रों एवं साध्वियों के आचार-व्यवहार सम्बन्धी तारतम्य और भेदरेखा की दृष्टि से ये प्रसंग विशेष रूप से मननीय एवं समीक्षणीय हैं। नवम उद्दे शक में साधु की प्रतिमाओं तथा अभिग्रह का और दशम अध्ययन में यवमध्यचन्द्र प्रतिमा, वज्रमध्य-चन्द्र प्रतिमा आदि का वर्णन है । दशम अध्ययन में शास्त्राध्ययन की मर्यादा एवं नियमानुक्रम का विवेचन है, जो प्रत्येक साधु-साध्वी के लिए ज्ञातव्य है । उसके अनुसार निम्नांकित दीक्षा - पर्याय - सम्पन्न साधु निम्नांकित रूप में शास्त्राध्ययन का अधिकारी है : दीक्ष-पर्याय तीन वर्ष चार वर्ष पांच वर्ष आठ वर्ष दश वर्ष ग्वारह वर्ष बारह वर्ष तेरह वर्ष चौदह वर्ष पन्द्रह वर्ष सोलह वर्ष सतरह वर्ष अठारह वर्ष उन्नीस पर्ष बीस वर्ष Jain Education International 2010_05 शास्त्र आचार-कल्प सूत्रकृतांग दशा तस्कन्ध, कल्प और व्यवहार स्थानांग, समवायांग व्याख्या - प्रज्ञप्ति क्षुल्लिका -विमान- प्रविभक्ति, महती विमान -प्रविभक्ति अंगचूलिका, वंग ( वर्ग ) - चूलिका एवं व्याख्या - चूलिका अरुपपात, गरुडोपपात, वरुणोपपात, वैश्रमणोपपात, वेलघरोपपात । उत्थान-श्रुत, समुत्थान-श्रुत, देवेन्द्रोपपात, नागपरियापनिका स्वप्न- अध्ययन चारण - भावना - श्रध्ययन वेद - निसर्ग आशीविष- भावना - श्रध्ययन दृष्टि-विष- भावना - अंग दृष्टिवाद अंग सभी शास्त्र For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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