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भाषा और साहित्य ] आर्ष (अर्द्धमागधी) प्राकृत और आगम वाङमय [ ४४९
चूरिणका र जिनदास महत्तर का मन्तव्य है कि विसाहगणि ( विशाख गणि ) महत्तर ने इसकी रचना की, जिसका उद्देश्य अपने शिष्यों-प्रशिष्यों का हित-साधन था। पंचकल्प चूरिण में बताया गया है कि प्राचार्य भद्रबाहु निशीथ सूत्र के रचयिता थे।
निशी -सूत्र में बीस उद्देशक हैं । प्रत्येक उद्देशक भिन्न-भिन्न संख्यक सूत्रों में विभक्त है।
व्याख्या-साहित्य __निशीथ के सूत्रों पर नियुक्ति की रचना हुई। परम्परा से आचार्य भद्रबाहु नियुक्तिकार के रूप में प्रसिद्ध हैं । सूत्र एवं नियुक्ति के विश्लेषण हेतु संघदास गरिण ने भाष्य की रचना की। सूत्र, नियुक्ति और भाष्य पर जिनदास महत्तर ने विशेष चूणि को रचना की, जो अत्यन्त सार-गभित है। प्रद्य म्न सूरि के शिष्य द्वारा इस पर अवचूरिण की भी रचना की गयी। इस पर वृहद् भाष्य भी रचा गया, पर, वह प्राज प्राप्त नहीं है। सन्मति ज्ञानपीठ, आगरा द्वारा निशीथ सूत्र का भाष्य एवं चूणि के साथ चार भागों में प्रकाशन हुआ है, जिसका सम्पादन सुप्रसिद्ध विद्वान् उपाध्यायश्री अमरमुनिजी तथा मुनिश्री कन्हैयालालजी 'कमल' द्वारा किया गया है।
२. महानिसीह ( महानिशीथ ) महानिशीथ को समग्र प्रात् प्रवचन का सार बताया गया है। पर, वस्तुतः जो मूल रूप में महा-निशीथ था, वह यथावत् नहीं रह सका। कहा जाता है कि उसके पन्ने नष्टभ्रष्ट हो गये, उन्हें दीमक खा गये। तत्पश्चात् प्राचार्य हरिभद्र सूरि ने उसका पुनः परिष्कार या संशोधन किया और उसे एक स्वरूप प्रदान किया। ऐसा माना जाता है कि वृद्धवादी, सिद्धसेन, यक्षसेन, देवगुप्त, यशोवर्धन, रविगुप्त, नेमिचन्द्र तथा जिनदास गणि प्रभृति प्राचार्यों ने उसे समादृत किया। वह प्रवर्तित हुआ। साधारणतया निशीथ को लघु निशोथ और इसे महानिशीथ कहा जाता है। पर, वास्तव में ऐसा घटित नहीं होता; क्योंकि उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि महानिशीथ का वास्तविक रूप विद्यमान नहीं है।
कलेवर : विषय-वस्तु
महानिशीथ छः अध्ययनों तथा दो चूलाओं में विभक्त है । प्रथम अध्ययन का नाम शल्योद्धरण है। इसमें पाप रूप शल्य की निन्दा और पालोचना के सन्दर्भ में अठारह पाप-स्थानकों की चर्चा है। द्वितीय अध्ययन में कर्मों के विपाक तथा ताप-कर्मों की मालोचना की विधेयता का वर्णन है। तृतीय और चतुर्थ अध्ययन में कुत्सित शील या प्राचरण वाले साधुओं का संसर्ग न किये जाने के सम्बन्ध में उपदेश हैं । प्रसंगोपात्ततया ग्रहां नवकार मन्त्र की भी चर्चा है और बताया गया है कि आर्य वज्र ने नवकार मन्त्र का
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