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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [ खण्ड : २
१. निसीह (निशीथ) निशीथ शब्द का अर्थ ___ निशीथ शब्द का अर्थ अन्धकार, अप्रकाश या रात्रि है। निशीथभाष्य में इसका विश्लेषण करते हुए कहा गया है : "अप्रकाश या अन्धकार लोक में निशीथ शब्द से अभिहित होता है। जो अप्रकाशधर्म-रहस्यभूत या गोपनीय होता है, उसे भी निशीथ कहा गया है ।" । इस व्याख्या का तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार रहस्यमय विद्या, मन्त्र, तन्त्र, योग आदि अनधिकारी या अपरिपक्व बुद्धिवाले व्यक्तियों को नहीं बताये जा सकते अर्थात् उनसे उन्हें छिपा कर या गोप्य रखा जाता है, उसी प्रकार निशीथ सूत्र भी गोप्य है-हर किसी के समक्ष उद्घाट्य नहीं है । स्वरुप : विषय
निशोथ आचारांग सूत्र के द्वितीय श्रुत-स्कन्ध से सम्बद्ध माना जाता है। इसे आचारांग के द्वितीय श्रुत-स्कन्ध की पंचम चूला के रूप में स्वीकार किया जाता है, जिसे निशीथ-चूलाअध्ययन कहा जाता है। निशीश को आचार-प्रकल्प के नाम से भी अभिहित किया गया है।
निशीथ सूत्र में साधुओं और साध्वियों के प्राचार से सम्बद्ध उत्सर्ग-विधि तथा अपवाद-विधि का विवेचन है एवं उनमें स्खलना होने पर आचरणीय प्रायश्चित्तों का विवेचन है। इस सन्दर्भ में वहाँ बहुत सूक्ष्म विश्लेषण हुअा है, जो अपने संयमजीवितव्य का सम्यक् निर्वाह करने की भावना वाले प्रत्येक निर्ग्रन्थ तथा निर्ग्रन्थिनी के लिए पठनीय है। ऐसी मान्यता है कि यदि साधु निशीथ सूत्र विस्मृत कर दें तो यावज्जीवन प्राचार्य-पद का अधिकारी नहीं हो सकता ।
रचना : रचनाकार
निशीथ सूत्र की रचना कब हुई, किसके द्वारा हुई, यह निर्विवाद नहीं है। बहुत पहले से इस सम्बन्ध में मत-भेद चले आ रहें हैं । निशीथ भाष्यकार का अभिमत है कि पूर्वधारी श्रमणों द्वारा इसकी रचना की गयी। अर्थात् यह पूर्व-ज्ञान के प्राधार पर निबद्ध है। इसका और अधिक स्पष्ट रूप इस प्रकार माना जाता है कि नवम प्रत्याख्यान पूर्व के माचार-संज्ञक तृतीय अधिकार के बीसवें प्राभृत के प्राधार पर यह (निशीथ सूत्र ) रचा गया।
१. जं होति अप्पगासं, तं तु निसीहं ति लोगसंसिद्धां। ज अप्पगासधम्म अण्णं पि तयं निसीधति।
-- गाथा ६९ ।
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