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________________ ४१८ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन. [खण्ड : २ पंचमहाव्रत मूलक धर्म के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध था तथा क्रमशः उसका भगवान् महावीर के पाम्नाय में सम्मिलित होना प्रारम्भ हो गया था। प्राचार्य अभयदेव सूरि की टीका के अतिरिक्त इस पर प्रवरिण तथा लघुवृत्ति भी है। लघवृत्ति के लेखक श्री दानशेखर हैं । ६. णायाधम्मकहाओ (ज्ञाता धर्मकथा या ज्ञात धमकथा ) নাম ঋী বাংথ। णायाधम्मकहाओ के तीन संस्कृत-रूपान्तर हो सकते हैं-ज्ञाता धर्मकथा, ज्ञातृधर्मकथा न्याय धर्मकथा। अभिधान राजेन्द्र में ज्ञाता धर्मकथा की व्याख्या में कहा गया है : "ज्ञात का अर्थ उदाहरण है। इसके अनुसार इसमें उदाहरण प्रधान धर्मकथाए हैं । अथवा इसका अर्थ इस प्रकार भी किया जा सकता है-जिसके प्रथम श्रुत स्कन्ध में ज्ञात अर्थात् उदाहरण हैं तथा दूसरे श्रुत-स्कन्ध में धर्म-कथाएं हैं, वह ज्ञाता धर्मकथा है। ज्ञातृधर्मकथा की व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है : ज्ञातृ अर्थात् ज्ञातृ कुलोत्पन्न या ज्ञातृपुत्र भगवान् महावीर द्वारा उपदिष्ट धर्मकथाओं का जिसमें वर्णन है, वह ज्ञात धर्मकथा सूत्र है । परम्परया इसी नाम का अधिक प्रचलन है।" तीसरा रूप जो न्यायधर्मकथा सूचित किया गया है, इसके अनुसार न्याय-ज्ञान अथवा नीति-सम्बन्धी सामान्य नियमों - विधानों और दृष्टान्तों द्वारा बोध कराने वाली धर्म कथाएं जिसमें हों, न्याय-धर्म कथा सूत्र है। आम का स्वरूप : कलेवर दो श्रुत-स्कन्धों में यह आगम विभक्त है। प्रथम श्रुत-स्कन्ध में उन्नीस अध्ययन हैं तथा दूसरे में दश वर्ग। प्रथम श्रुत-स्कन्ध के प्रथम अध्ययन में राजगृह के राजा श्रेणिकबिम्बिसार के धारिणी नामक रानी से उत्पन्न राजपुत्र मेघकुमार का वर्णन है। जब वह कुमार अपने वैभव तथा समृद्धि के अनुरूप अनेक विद्याओं तथा कलाओं की शिक्षा प्राप्त करते हुए युवा हुआ, उसका अनेक राजकुमारियों से विवाह कर दिया गया। एक बार ऐसा प्रसंग बना, राजकुमार ने भगवान् महावीर का उपदेश श्रवण किया। १. ज्ञातानि उदाहरणानि तत्प्रधाना धर्मकथा ज्ञाताधर्मकथा । अथवा ज्ञातानि ज्ञाताध्ययनानि प्रथम तस्कन्ध, धर्मकथा द्वितीये, यासु ग्रन्थ-पद्धतिषु ता ज्ञाताधर्मकथाः । - अभिधान राजेन्द्र, चतुर्थ भाग, पृ. २००९ ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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