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________________ ३९८] आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड :२ आचार्य नागार्जुन सूरि ने इस वाचना को अध्यक्षता या नेतृत्व किया। उनकी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका थी, अतः यह नागार्जुनीय वाचना कहलाती है। वलभी की पहली वाचना के रूप में भी इसकी प्रसिद्धि है। एक ही समय में दो वाचनाएं ? कहा जाता है, उक्त दोनों वाचनाओं का समय लगभग एक ही है। ऐसी स्थिति में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि एक ही समय में दो भिन्न स्थानों पर वाचताए क्यों आयोजित को गयों ? बलभी में आयोजित वाचना में जो मुनि एकत्र हुए थे, वे मथुरा भी जा सकते थे। इसका एक कारण यह हो सकता है कि उत्तर भारत और पश्चिम भारत के श्रमण-संघ में स्यात् किन्हीं कारणों से मतक्य नहीं हो। इसलिए पलभी में सम्मिलित होने वाले मुनि मथरा में सम्मिलित नहीं हुए हों। उनका उस (मथुरा में आयोजित) वाचना को समर्थन न रहा हो। इसी कोटि की एक परिकल्पना इस प्रकार भी की जा सकती है कि मथुरा में होने वाली वाचना की गतिविधि, कार्यक्रम, पद्धति तथा नेतृत्व आदि से पश्चिम का श्रमण संघ सहमत न रहा हो। तीसरा कारण यह भी सम्भाव्य है कि माथी वाचना के समाप्त हो जाने के पश्चात् यह धाचना आयोजित की गयी हो । माथुरी वाचना में हुआ कार्य इधर के मुनियों को पूर्ण सन्तोषजनक न लगा हो; अत: आगम एवं तदुपजीधि वाङमय का उससे भी उत्कृष्ट संकलन तथा सम्पादन करने का विशेष उत्साह उनमें रहा हो और उन्होंने इस वाचना की आयोजना की हो । फलतः इसमें कालिक श्रुत के अतिरिक्त अनेक प्रकरण-ग्रन्थ भी संकलित किये गये, विस्तृत पाठ वाले स्थलों को अर्थ-संगति पूर्वक व्यवस्थित किया गया । इस प्रकार की और भी करुपनाए की जा सकती है। पर, इतना तो मानना ही होगा कि कोई-न-कोई कारण ऐसा रहा है, जिससे समसामयिकता या समय के थोड़े से व्यवधान से ये वाचनाए आयोजित की गयीं। कहा जाता है, इन वाचनाओं में वाङमय लेख-वद्ध भी किया गया। दोनों घाचनाओं में संकलित साहित्य में अनेक स्थलों पर पाठान्तर या वाचना-भेद भी दृष्टिगत होते हैं । ग्रन्थ-संकलन में भी कुछ भेद रहा है। ज्योतिष्करण्डक की टीका' में उल्लेख है कि अनुयोगद्वार आदि सूत्रों का संकलन मापुरी घाचना के आधार पर किया गया। ज्योति करण्डक आदि ग्रन्थ पालभी वाचना से गृहीत है । उपयुक्त दोनों वाचनाओं १. पृ० ४१ ___JainEducation International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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