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भाषा और साहित्य ] आर्ष (अद्ध मागधो) प्राकृत और आगम वाङमय [३९३
विशेषावश्यक भाष्य में इस सम्बन्ध में विश्लेषण करते हुए कहा गया है : आय वन तक जब अनुयोग अपृथक् थे, तब एक ही सूत्र की चारों अनुयोगों के रूप में व्याख्या होती थी। __अनुयोग विभक्त कर दिये जाए, उनकी पृथक्करण कर छंटनी कर दी जाए, तो वहां ( उस सूत्र में ) वे चारों अनुयोग व्यवच्छिन्न नहीं हो जाएगे ? भाष्यकारा समाधान देते हैं कि जहां किसी एक सूत्र की व्याख्या चारों अनुयोगों में होती थी, वहां चारों में से अमुक अनुयोग के आधार पर व्याख्या किये जाने का यहां आशय है ।
आर्य रक्षित द्वारा विभाजन ___ अनुयोग विभाजन का कार्य आर्य रक्षित द्वारा सम्पादित हुआ। आर्य रक्षित आर्य वच के पट्टाधिकारी थे। वे महान् प्रभावक थे, देवेन्द्रों द्वारा अभिपूजित थे। उन्होंने युग की विषमता को देखते हुए कहां कौन-सा अनुयोग व्याखेय है, इसकी मुख्यता की दृष्टि से चार प्रकार से विभाजन किया-सूत्र-ग्रन्थों को चार अनुयोगों में बांटा 11
आर्य रक्षित ने शिष्य पुष्यमित्र-दुर्बलिका पुष्यमित्र को, जो मति , मेधा और धारणा आदि समग्र गुणों से युक्त थे, कष्ट से श्रुतार्णव को धारण करते देखकर अतिशय ज्ञानोपयोग द्वारा यह जाना कि लोग क्षेत्र और काल के प्रभाव से भविष्य में मति, मेघा और धारणा से परिहीन होंगे। उन पर अनुग्रह करते हुए उन्होंने कालिक आदि श्रृत के दिमाग द्वारा अनुयोग किये। १ अपुहुत्ते अणुओगे चत्तारि दुवार भासए एगो।
पुहुताणुओगकरणे ते अत्थ तओ वि वोच्छिन्ना ॥ किं वट्टरेहिं पुहुत्तं कयमह तदणंतरेहिं मणियम्मि । तदणंतरेहिं तदभिहियगहियसुत्तस्थसारेहिं ॥ देविंदवं दिएहिं महाणुभावेहिं रखियज्जेहिं । जुगमासज्ज विभत्तो अणुओगो तो कओ चउहा ।।
-विशेषावश्यक भाष्य, २२८६-८८ २. मति = अवनोध-शक्ति ३. मेधा = पाठ-शक्ति 8. धारणा = अवधारण-शक्ति ५. ऐदयुगोन पुरुषानुग्रहबुद्ध या चरणकरण द्रव्यधर्मकथागणितानुयोग भेदाच्चतुर्धा ।
-सूत्रकृतांग टीका, उपोद्घात ६. नाऊन रक्खियज्जो मइमेहाधारणासमग्ण पि ।
किच्छेण धरेमाणं सुयण्णवं पूसमित्त ति ॥ अइसयकओवओगो मइमेहाधारणाइपरिहीणे। नाऊ गमेस्स पुरिसे खेत्त कालाणुभावं च ॥ साणुग्गहोऽणुओगे वीसु कासी य सुयविभागेणं ॥
-विशेषाबश्यक माध्य, २२८९-९१
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