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३९२ ] आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड : २ अनुयोग के प्रकार ___अनुयोग चार भेदों में विभक्त किये गये हैं। : १. चरणकरणानुयोग', २. धमकथानुयाग, ३. गणितानुयोग तथा ४. द्रव्यानुयोग । आगमों में इन चार अनुयोगों का विवेचन है। किन्हीं में कोई विस्तार से वर्णित हुए हैं और किन्हीं में संक्षेप से । अनुयोग : अपृथकता ___ आर्य बज तक आगम इस स्थिति में रहे कि वहां अनुयोगात्मक दृष्टि से पृथकता नहीं, थी। प्रत्येक सूत्र चारों अनुयोगों द्वारा व्याख्यात होता था। आवश्यक नियुक्ति में इस सम्बन्ध में उल्लेख है : “कालिक श्रुत (अनुयोगात्मक) व्याख्या को दृष्टि से अपृथक थे अर्थात् उनमें चरणकरणानुयोग प्रभृति अनुयोग चतुष्टय के रूप में अविभक्तता थी। आर्य वच के अनन्तर कालिक श्रुत और दृष्टिवाद की अनुयोगात्मक पृथक्ता ( विभक्तता ) की गयो ।"
आचार्य मलयगिरि ने इस सम्बन्ध में सूचित किया है कि तब तक साधु तीक्ष्णप्रज्ञ थे; अतः ( अनुयोगात्मक दृष्टया ) अविभक्तरूपेण व्याख्या का प्रचलन था-प्रत्येक सूत्र में चरणकरणानुयोग आदि का अविभागपूर्वक वर्तन था।
नियुक्ति में जो केवल कालिक श्रत का उल्लेख किया गया है, आचार्य मलयगिरि ने इसे स्पष्ट करते हुए लिखा है कि मुख्यता को दृष्टि से यहां कालिक श्रुत का ग्रहण है अन्यथा अनुयोगों का तो कालिक, उत्कालिक आदि में सर्वत्र अविभाग था ही। १. चत्तारिउ अणुओगा, चरणे धम्मगणियाणुओगे य । दवियाऽणुओगे य तहा, जहकम्मं ते महड्ढीया ।
-अभिधान राजेन्द्र, प्रथम माग, पृ० ३५६ २. चरण का अर्थ चर्या, आचार या चारित्र्य है। इस सम्बन्ध में जहां विवेचन-विश्लेषण ___हो, वह चरणकरणानुयोग है। ३. द्रव्यों के सन्दर्भ में सदसत्पर्यायालोचनात्मक विश्लेषण या विशद विवेचन जिसमें हो, वह - द्रव्यानुयोग है। ४. जावंत अज्ज वइरा अपुहुत्तं कालिआणुओगस्स। तेणारेण पुहुत्तं कालिअ सुअ दिट्टिवायं य॥
-आवश्यक-नियुक्ति, ७६३ ५. यावदार्यवज्रा-आर्यवज्रस्वामिनो मुखो महामतयस्तवितकालिकानुयोगस्य-कालिकश्रुत
व्याख्यानस्यापृथक्त्वं-प्रतिसूत्रं चरणकरणानुयोगादोनामविभागेन वर्तनभासीत्, तदा साधूनां तीक्ष्ण प्रज्ञत्वात् । कालिकग्रहणं प्राधान्यख्यापनार्थम्, अन्यथा सर्वानुयोगस्यापृथक्त्वमासीत् ।
-आवश्यक-निर्यक्ति, पृ० ३८३, प्रकाशक, आगमोदय समिति, बम्बई
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