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________________ भाषा और साहित्य | आष (अद्ध मागधी) प्राकृत और आगम धामय [३७९ जीवन-निर्वाह हेतु समुद्र-तट पर चला गया। अधीत का गुणन-आवृत्ति न किये जाने के कारण साधुओं को श्रुत विस्मृत हो गया। अभ्यास न करते रहने से मेधावी जनों द्वारा किया गया अध्ययन भी नष्ट हो जाता है। दुष्काल का अन्त हुआ। सारा साधु-संघ पाटलिपुत्र में मिला। जिस-जिस को जो अंग, अध्ययन, उद्देशक आदि स्मरण थे, उन्हें संकलित किया गया । बारहवें अंग दृष्टिपाद का संकलन नहीं हो सका। संघ को चिन्ता हुई। आचार्य भद्रबाहु चतुर्दश पूर्वधर थे, वे नेपाल के मार्ग में थे । श्रीसंघ ने उन्हें बुलाने के लिए दो मुनि भेजे।"1 आचार्य हरिभद्र के प्राकृत उपदेश पद में भी इसी प्रकार का उल्लेख है। मावश्यक चूर्णि में भी इसी तरह का वर्णन है। दक्षिण जाने को कल्पना नीरनिधि अथवा समुद्र-तट पर साधुओं के जाने का जो यहां उल्लेख है, उससे श्रमग-संघ के दक्षिणी समुद्र-तट या दक्षिण देश जाने को कल्पना को जाती है। नीरनिधि से दक्षिणी समुद्र-तट ही क्यों लिया जाए ? उससे बगोपसागर (बंगाल की खाड़ी ) भी लिया जा सकता है, जिसके तट पर उड़ीसा की एक लम्बो पट्टी अवस्थित है, जहां जैन धर्म का संचार हो चुका था। १. इतश्च तस्मिन् दुष्काले, कराले कालरात्रिवत् । निर्वाहार्थ साधुसंघस्तीरं नीरनिधेर्ययो ।। अगुण्यमानं तु तवा, साघुनां विस्मृतं श्रुतम् । अनम्यसनतो नश्यत्यधीतं धीमतामपि ॥ संघोऽथ पाटलिपुत्रे, दुष्कालान्तेऽखिलोऽमिलत् । यदंगाध्ययनोद्देशाद्यासीद् यस्य तवादे ॥ ततश्चैकादशांगानि, श्रीसंघोऽमेलयत्तदा । दृष्टिवादनिमित्त च, तस्थौ किंचिद् विचिन्तयन् ॥ नेपालदेशमार्गस्थ, भद्रबाहुं च पूर्विणम् । ज्ञात्वा संघः समाहवातुं, ततः प्रेषोन्मुनिद्वयम् ॥ --स्थविरावली चरितम्, ६, ५५-५६ २. जाओ अ तम्मि समये दुक्कालो दो य दसम बरिसाणि । सव्यो साहुसमूहो गमो तो जलहितीरेसु॥ तदुबरमे सो पुणरवि पाडलिपुत्ते समागओ विहिया । संघेणं सुयविसया चिंता किं कस्स अत्यति ॥ जं जस्स आसि पासे उद्दस उझयण माइसंघडिउं । तं सव्वं एक्कारय अंगाई तहेव ठविपाई॥ - ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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