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भाषा और साहित्य] आषं ( अर्द्ध मागधी) प्राकृत और आगम वाङमय [३६१ पुष्पमाला की तरह स्त्रमाला को नाथन
बोजादि बुद्धि सम्पन्न व्यक्ति ( गणधर ; उस ज्ञानमयी पुष्प वृष्टि को समग्रतया ग्रहण कर विचित्र पुष्प-माला की तरह प्रवचन के निमित्त सूत्र-माला-शास्त्र-माला ग्रथित करते हैं।
जिस प्रकार मुक्त-बिखरे हुए पुष्पों का ग्रहण दुष्कर होता है और गूथे हुए पुष्पों या पुष्प-गुच्छों का ग्रहण सुकर होता है, वही प्रकार जिन-वचन रूपी पुष्पों के सम्बन्ध में है। पद, वाक्य, प्रकरण, अध्ययन, प्राभृत आदि निश्चित क्रमपूर्वक वे ( सूत्र ) व्यवस्थित हों, तो यह गृहीत है, यह गृहीतव्य है, इस प्रकार समीचीनता और सरलता के साथ उनका ग्रहण,
जं बोहमउलणाइ सूरकरामरिसओ समाणाओ। कमलकुमुयाण तो तं साभव्वं तस्स तेसिं च ॥ जह बोलूगाईणं पगास धम्मावि सो सदोसेण । उइओऽवि तमोरूनो एवमभव्याण जिणसूरो ॥ सज्झ तिगिच्छमाणो रोगं रागी न भण्णए वेज्जो। मुणमाणो य असझं निसेहयंतो जह अदो अदोसो ॥ तह भव्वकम्मरोग नासंतो रागव न जिणवेज्जो । न य दोसि अभवासझकम्मरोग निसेहंतो ॥ मोत्त अजोग्गं जोग्गे दलिए रूवं करेइ रूवारो। न य रागदोसिल्लो तहेव जोगे विबोहेतो ॥
-विशेषावश्यक भाष्य, ११०२-१११० १. जिस बुद्धि द्वारा एक पद से अनेक पद गृहीत कर लिये जाते हैं, उसे बीज-बुद्धि कहते
हैं । बीन-बुद्धि के साफ पाठ में उल्लिखित आदि शब्द कोष्ठ-बुद्धि का सूचक है । जैसे, धान्य कोष्ठ अपने में अखण्ड धान्य-भण्डार संजोये रखता है, उसी प्रकार जो बुद्धि अखण्ड सूत्र-वाड्मय को धारण करती है, वह कोष्ठ-बुद्धि कही जाती है। प्रवचन का अभिप्राय प्रसिद्ध वचन या प्रशस्त वचन या धर्मसंघ से है अथवा प्रवचन से द्वादशांग श्रुत लिया जा सकता है । वह ( द्वादशांग श्रुत ) किस प्रकार ( उद्भावित ) हो, इस आशय से द्वादशांगात्मक प्रवचन के विस्तार के लिए या संघ पर अनुग्रह करने के लिए गणवर सूत्र-रचना करते हैं। द्वादशांग रूप प्रवचन सुखपूर्वक ग्रहण किया जा सके, उसका सुखपूर्वक गुणन-परावर्तन, धारण-मरण किया जा सके, सुखपूर्वक दूसरों को दिया जा सके, सुखपूर्वक पृच्छा-विवेचन, विश्लेषण, अन्वेषण कि जा सके, एतदर्थ गगधरों का सूत्र-रवना का प्रयत्न होता है।
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