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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशोलन
[ खण्ड: २
जीवन आनन्द उल्लासपूर्ण था। जिनेश्वर देव की तरह गणधर सुधर्मा भव्य (मोक्ष जाने योग्य) प्राणियों का मन उल्लसित करते हुए अपने श्रमण-समुदाय सहित राजगृह आये। वे वहां गुणशील चैत्य में रुके । जम्बू ने आर्य सुवर्मा का आगमन सुना । मेघ का गर्जन सुनकर जैसे मयूर परम हर्षान्वित होता है, बेसा ही अपरिसीम हर्ष तब जम्बू को हुआ। वे रथ पर बैठे, प्रयाण किया, वहां आये । कुछ दूरी पर वाहन से उतर पड़े । अत्यन्त वैराग्य भाव लिये गणधर सुधर्मा के पास आये । उन्हें तीन बार प्रदक्षिणा की, मस्तक से प्रणमन और चन्दन किया, बैठे ।
आर्य सुधर्मा ने कुमार जम्बू तथा समवेत जन परिषद् को उद्दिष्ठ कर जीव, अजीव, आस्रव, सम्बर, निर्जरा, बन्ध तथा अनेक पर्यायात्मक मोक्ष के स्वरूप का विश्लेषण किया । गणधर सुधर्मा का उपदेश बचन सुन जम्बू के मन में वैराग्य भाव जागा । अत्यन्त आत्म-तुष्ट होते हुए वे उठे । विनम्रतापूर्वक बन्वन किया तथा उनसे निवेदन करने लगे- 'प्रभो ! आपसे मैंने धर्म-तत्व श्रवण किया। अब में अपने माता-पिता को स्वीकृति लेकर आपके श्रीचरणों का आश्रय ले आत्म-कल्याण का अनुष्ठान करूंगा ।"
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गणधर सुधर्मा बोले - " भव्य जनों के लिए यह करणीय - करने योग्य है ।"
भाव-जागृति
आर्य सुधर्मा को प्रणमन कर कुमार जम्बू रथ पर आरूढ़ हुए। जिन मार्ग से आये थे । उसी से प्रयाण कर सगरा के द्वार पर पहुंचे। वहां सामने उन्हें यानों की भीड़ दिखाई दी । सोचा, इस द्वारा से जाने से अनावश्यक विलम्ब होगा । अधिक अच्छा यह होगा, नगर के दूसरे द्वारा से प्रवेश करू, ताकि शीघ्र पहुंच सकू । वे सारथि से कहने लगे कि रथ वापिस लोटाओ, दूसरे द्वारा से नगर में प्रविष्ट होता है । सारथि ने घोड़े हांके । रथ दूसरे द्वारा पर पहुंचा। वहां जम्बू ने देखा - शिला, शत्वनी, कालचक्र आदि शस्त्र रज्जु द्वारा लटकाये हुए हैं । वे शत्रु सेना के नाश के लिए थे। उन्हें देखने पर जम्मू मन में ऊहापोह करने लगे, यदि संयोगवश ये शस्त्र मेरे यथ पर गिर जाए तो कितना बुरा हो, व्रत स्वीकार किये बिना ही मेयामरण हो जाए और में दुर्गति में जाऊं । मन में इस प्रकार संकल्प करते हुए वे सारथि से बोले कि रथ को वापिस लौटा लो। मैं आर्य सुधर्मा के पास गुणशील चेत्य जाना चाहता । सारथि ने रथ लौटा लिया ।
कुमार जम्बू आयं सुवर्मा के पास पहुंचे। उनसे अभ्यर्थना की--में आजीवन ब्रह्मचारी रहूंगा । इस प्रकार स्वेच्छापूर्वक उन्होंने ब्रह्मचयं -व्रत स्वीकार किया । रथ पर आरूढ़ हुए । नगर में आये । अपने घर पहुंचे ।
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