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भाषा और साहित्य | आर्ष (अर्द्ध मागधी) प्राकृत और आगम वाङमय [ ३४३ निरूपित स्थविराधली में आयं जम्बू के सम्बन्ध में इतना-सा उल्लेख है : थेरस्स णं अज्जसुहम्मस्स अग्गिवेसायण गुत्तस्स अज्जजवुनामथेरे अतेवासी कामवगुत्तेण अर्थात् अग्निवैश्यन गोत्रोत्पन्न, स्थविर आयं सुधर्मा के काश्यपगोत्रोत्पन्न आर्य जम्बू नामक स्थविर अन्तेवासी थे।
नन्दो सूत्र में स्थविरावलो के वर्णन के अन्तर्गत आयं जम्बू का आय सुधर्मा के पट्टधर के रूप में उल्लेख हुआ है :
सुहम्मं अग्गिवेसाणं, जम्बू नामं च कासवं ।।
यह स्तुत्यात्मक रचना है । इस गाथा, में आर्य सुधर्मा और आर्य जम्बू का द्वितीया विभक्त्यन्त प्रयोग है। गाथा के उत्तरार्ध में चन्दे पद आया है, जो इनके साथ भी योजनीय है।
. आर्य जम्बू के सम्बन्ध में अङ्ग, उपांग तथा तत्सम्बद्ध आगम-वाङमय में ऊपर जो कुछ कहा गया है, उससे अधिक वर्णन प्राप्त नहीं होता। दिगम्बर-वाङमय में आय जम्ब के विषय में प्राचीनतम उल्लेख तिलोयपण्णत्ती' में है। वहां केवल नामोल्लेख मात्र है। मोहक व्यक्तित्व : कवियों और लेखकों का आकर्षण
आर्य जम्बू अत्यन्त सुन्दर, सुकुमार, हृद्य और प्रशस्त व्यक्तित्व के धनी थे। उनका दैहिक सोष्ठध बड़ा आकर्षक था। छोटी-सी आयु में अनेक विद्याओं तथा कलाओं के मर्मज्ञ थे। पैतृक परम्परा से अतुल सम्पदा के अधिपति थे। माता-पिता के इकलौते पुत्र थे; इसलिए जो स्नेह एवं लाड़-प्यार उन्हे मिला, वह कुछ विरले ही सौभाग्यशाली पुरुषों को प्राप्त होता है । जम्बू का जिन आठ श्रेष्ठि-कन्याओं के साथ विवाह हुमा, वे अनुपम सौन्दर्य, प्रेम और सौहार्द की प्रतिमूर्ति थीं। जिसके लिए लोग सतृष्ण भाव से तरसते रहते हैं, अपरिश्रान्त रूप से अहर्निश उद्यम तथा प्रयत्न करते हैं, वह सब सम्पत्, वैभव, समृद्धि जम्बू को सहज ही प्राप्त थी। पर, मुमुक्षानुभाषित जम्बू ने इन सबका अनायास ही परित्याग कर दिया। तीनतम वैराग्य और उत्कृष्टतम त्याग का यह एक ऐसा उदाहरण था, जिसकी समानता जगत् में बहुत कम मिल सकती है । उद्दाम यौवन, अपरिमित १. सुहम्मं अग्गिवेसाणं, जम्बू नामं च कासवं । पभवं कच्चायणं वन्दे, वच्छ सिज्जंभवं तहा ॥
-नन्दीसूत्र, स्थविरावली, गाथा २५ २. तम्मि कदकम्मणासे जंबू सामि त्तिकेवली जादो । तस्य वि सिद्धि पवण्णे केवलिणो णत्यि अणुबद्धा ॥
-तिलोयपण्णत्ती, १४७७
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