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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन स एवातीतो भवति ?"
जो ज्ञान यथावत् अधधारित नहीं है अर्थात यथार्थरूपेण जिसकी धारणा नहीं है, प्राचार्य अभयदेव सूरि के अनुसार यह यहां संशय कहा गया है। भगवान् महावीर द्वारा प्रतिपादित चलमाणे चलिए का उदाहरण देते हुए आचार्य अभयदेव सूरि ने बतलाया है कि 'चलन' वर्तमान काल का सूचक है और चलितः अतीत का। दोनों एक कैसे हो सकते हैं ? इस प्रकार जो जिज्ञासा होती है, संशय का अभिप्राय उसी से है।
इस प्रसंग को इतना स्पष्ट करने का तात्पर्य यह है, आर्य जम्बू वास्तव में सन्दिग्धचेता नहीं थे, वे उत्कट जिज्ञासु थे। जायकोउहले विशेषण से यह स्पष्टतया व्यक्त होता है। कुतूहल का आशय औत्सुक्य है, वास्तव में उत्सुकता जिज्ञासु ध्यक्ति को ही होती है। संशयग्रस्त व्यक्ति विपरीत धारणा बना लेता है। ऐसा होने पर उत्सुकता का भाष मन से निकल खाता है।
माय जम्बू नायाधम्मकहानो के उक्त प्रसंग में जिस प्रकार प्रश्न करते हैं, प्रायः अन्यत्र भी वे लगभग उसी शैली से प्रश्न करते पाये जाते हैं। शब्दावली में कोई विशेष अन्तर नहीं है। प्रश्न-क्रम का एक अन्य रूप
सूत्रकृतांग सूत्र में आर्य जम्बू द्वारा आयं सुधर्मा से प्रश्न किये जाने का एक और प्रकार प्राप्त होता है । आर्य जम्बू कहते हैं :
पुच्छिस्सु णं समणा माहणा य, अगारिणो य परतित्यिा य। से केइ गंतहियं धम्ममाहु, अणे लिसं साहु समिक्खयाए॥ कहं च गाणं कह सणं से, सीलं कहं नायसुतस्स आसि। जाणासि गं भिक्खु जहातहेणं,
अहासुहं बूहि जहा णिसंतं ॥ -श्रमण, ब्राह्मण, गृहस्थ तथा अन्य तीर्थी-अन्य सम्प्रदायानुयायी मुझ से पूछते हैं कि एकान्त रूप से प्राणियों का हित करने वाले धर्म का सम्यक्तया आख्यान किसने किया ?
१. व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र, १.१. प्रश्नोत्थान २. सूत्रकृतांग सूत्र, १.६.१,२
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