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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [ खण्ड : २ ऋग्वेद के लिपि-सूचक संकेतों के सन्दर्भ में कहा जा सकता है कि यदि विलम्बित से विलम्बित भी मानें तो ऋग्वेद का अन्तिम मण्डल ई० पू० १२०० से पश्चाद्वी नहीं है, अन्य मण्डल तो और भी प्राचीन हैं। इस प्रकार ई० पू० १२०० से पहले ब्राह्मी लिपि का अस्तित्व होना चाहिए।
एक ओर यह सब, दूसरी ओर अशोक के अभिलेखों के पूर्व वैसा कुछ न मिलना, जिससे लेखन सिद्ध हो, कुछ निराशा उत्पन्न करता है। एक और कल्पना
कहीं ऐसा तो नहीं हुआ हो, ब्राह्मो का पूर्ववर्ती कोई रूप रहा हो, जो उतना समृद्ध और व्यवहार्य न हो, जिसका अभिलेखों में समीचीनता से प्रयोग हो सके । फिनिशिया आदि पश्चिम एशिया के देशों के लोगों के साथ भारतवासियों का व्यावसायिक प्रयोजन से जो सम्पर्क बढ़ा, तब यह स्वाभाविक था, एक-दूसरे की विशेषताओं का आदान-प्रदान हो । उस प्रसंग में भारतीयों ने अपनी लिपि को कुछ परिष्कृत किया हो। क्योंकि उन्हें वैसे वैदेशिक लोगों के साथ व्यवहार चलाना था, जिनकी अपनी लिपि थी। उस परिष्कार के परिणाम-स्वरूप उन ( भारतीयों ) को लिपि विकसित हुई हो। शताब्दियों की अवधि बीतने पर उसका और अधिक सम्मान हुआ हो और बह शिलालेख आदि में प्रयोग-योग्य हो गयी हो।
___ भारत के पुरातन कला-कौशल की प्रशस्ति के पक्षपाती इस कल्पना पर अन्यथा भी सोच सकते हैं। सम्भवतः ऐसा भी उनके मन में आ सकता है, यह अधुनातन पाश्चात्य मोवृत्ति का द्योतक है। किन्तु, प्रस्तुत प्रयोजन ऐपा नहीं है। जब तक कोई ठोस आंधार प्राप्त नहीं होता, उस तक पहुंचने के प्रयत्न में कल्पनाए. करनी ही होती हैं, जो अनेक प्रकार की हो सकती हैं; अतः प्रस्तुत उल्लेख केवल कल्पना मात्र है। बिद्वज्जन इस पक्ष पर भी विचार करें।
केवल इतने मात्र से आज के अनुसन्धान-प्रधान युग में काम नहीं चल सकता कि हमारे ग्रन्थों में ब्राह्मी की प्रशस्ति प्राप्त है। वह प्राचीन काल से परम समृद्ध रही है। अनुसंधान और गवेषणा का पथ अवरोध नहीं सहता। वह सदा गतिशील रहता है। वह इयता और इत्थंभूतता के जड़ बन्धन में जकड़ा नहीं रहता। वह नवनवोन्मेषशाली होता है; इसलिए केवल प्रशस्ति की भाषा ( Superlative Language ) में ही नहीं कहना होगा, न्याय और युक्ति द्वारा प्रमाणित तथ्य प्रस्तुत करने होंगे। ब्राह्मी-लिपि के प्रसंग में इन्हीं कुछ करणीयताओं की मांग है। आशा है, अनुसन्धित्सु जन इसे पूरा करने में संलग्न होंगे। यह किसी एक का नहीं, सब का काम है। वे ज्यों-ज्यों गम्भीर परिशीलन और गवेषणा
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